पूना करार 1932: डॉ. भीमराव आंबेडकर बनाम महात्मा गांधी | इतिहास, प्रभाव और दलित राजनीति का विश्लेषण
पूना करार: दलित राजनीति का ऐतिहासिक मोड़ और इसके गहरे प्रभाव भारतीय इतिहास में 24 सितंबर 1932 का दिन हमेशा याद किया जाएगा। यह वही दिन था जब पुणे की यरवदा जेल में डॉ. भीमराव आंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच वह समझौता हुआ जिसे हम पूना करार के नाम से जानते हैं। यह समझौता न सिर्फ दलित समाज बल्कि पूरे भारतीय राजनीतिक परिदृश्य को बदल देने वाला साबित हुआ। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे – पूना करार की पृष्ठभूमि, डॉ. आंबेडकर का दृष्टिकोण, गांधी जी की भूमिका, दलित समाज की प्रतिक्रिया, वर्तमान में इसके प्रभाव, और यह भी कि अगर यह करार न हुआ होता तो दलित समाज की स्थिति कैसी होती। पूना करार की पृष्ठभूमि ब्रिटिश सरकार ने 1932 में 'कम्युनल अवॉर्ड' (सांप्रदायिक पंचाट) की घोषणा की। इस अवॉर्ड के तहत दलितों को अलग निर्वाचक मंडल (Separate Electorates) देने का प्रस्ताव था। इसका मतलब यह था कि दलित समाज अपने ही समुदाय से अपने प्रतिनिधि चुन सकेगा। डॉ. आंबेडकर इस फैसले से सहमत थे क्योंकि यह दलित समाज को स्वतंत्र राजनीतिक पहचान और आत्मनिर्भरता देता। लेकिन गांधी जी को यह प्रस्ताव स...