अनुच्छेद 4 भारतीय संविधान: राज्यों का पुनर्गठन, संसद की शक्ति, सुप्रीम कोर्ट फैसले और विवाद
हमारा संविधान, हमारी पहचान – 12
अनुच्छेद 4: भारतीय राज्यों का पुनर्गठन और संविधान संशोधन पर प्रभाव | Article 4 of Indian Constitution in Hindi
उपशीर्षक
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 4 यह स्पष्ट करता है कि नए राज्यों का निर्माण या राज्यों का पुनर्गठन संसद की शक्ति के अंतर्गत आता है और इसके लिए संविधान संशोधन प्रक्रिया (अनुच्छेद 368) की आवश्यकता नहीं होती। यह अनुच्छेद भारतीय संघ की लचीलापन और अखंडता का परिचायक है।
भूमिका
भारत का संविधान दुनिया का सबसे विस्तृत और लचीला संविधान है। इसमें संघीय ढाँचे के साथ-साथ राज्यों की सीमाओं और संरचना को बदलने की प्रक्रिया भी स्पष्ट की गई है। अनुच्छेद 2 और 3 नए राज्यों के निर्माण और पुनर्गठन का आधार प्रदान करते हैं, जबकि अनुच्छेद 4 यह बताता है कि इस प्रक्रिया के दौरान की गई कानूनी व्यवस्थाएँ संविधान संशोधन नहीं मानी जाएँगी।
विस्तृत व्याख्या
अनुच्छेद 4 का संवैधानिक प्रावधान
अनुच्छेद 4 कहता है कि—
"अनुच्छेद 2 या अनुच्छेद 3 के अंतर्गत संसद द्वारा बनाई गई कोई भी विधि, संविधान संशोधन नहीं मानी जाएगी, भले ही उसमें पहली अनुसूची (राज्यों और संघीय क्षेत्रों की सूची) और चौथी अनुसूची (राज्यसभा में सीटों का आवंटन) में संशोधन किया गया हो।"
अनुच्छेद 4 के मुख्य बिंदु
-
संविधान संशोधन की आवश्यकता नहीं
- राज्यों की सीमाओं में बदलाव या नए राज्यों का निर्माण साधारण विधेयक द्वारा हो सकता है।
- इसके लिए अनुच्छेद 368 की विशेष प्रक्रिया लागू नहीं होती।
-
पहली और चौथी अनुसूची में संशोधन
- संसद को अधिकार है कि वह पहली अनुसूची (राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की सूची) और चौथी अनुसूची (राज्यसभा सीटों का बँटवारा) में परिवर्तन कर सके।
-
संसद की पूर्ण शक्ति
- संसद को राज्यों की सीमाएँ बदलने का अधिकार है।
- प्रभावित राज्य की राय ली जाती है, लेकिन उसकी सहमति बाध्यकारी नहीं होती।
संविधान संशोधन की आवश्यकता नहीं
- राज्यों की सीमाओं में बदलाव या नए राज्यों का निर्माण साधारण विधेयक द्वारा हो सकता है।
- इसके लिए अनुच्छेद 368 की विशेष प्रक्रिया लागू नहीं होती।
पहली और चौथी अनुसूची में संशोधन
- संसद को अधिकार है कि वह पहली अनुसूची (राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की सूची) और चौथी अनुसूची (राज्यसभा सीटों का बँटवारा) में परिवर्तन कर सके।
संसद की पूर्ण शक्ति
- संसद को राज्यों की सीमाएँ बदलने का अधिकार है।
- प्रभावित राज्य की राय ली जाती है, लेकिन उसकी सहमति बाध्यकारी नहीं होती।
अनुच्छेद 4 के तहत ऐतिहासिक घटनाएँ
-
राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956
- भारत को भाषायी आधार पर 14 राज्यों और 6 केंद्रशासित प्रदेशों में पुनर्गठित किया गया।
-
सिक्किम का भारत में विलय (1975)
- सिक्किम को भारत में मिलाने हेतु पहली और चौथी अनुसूची में संशोधन किया गया।
- इसे संविधान संशोधन नहीं माना गया।
-
तेलंगाना का गठन (2014)
- आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 के तहत नया राज्य तेलंगाना अस्तित्व में आया।
-
जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन (2019)
- अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को अलग-अलग केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया।
- यह अनुच्छेद 3 और 4 के अंतर्गत किया गया।
राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956
- भारत को भाषायी आधार पर 14 राज्यों और 6 केंद्रशासित प्रदेशों में पुनर्गठित किया गया।
सिक्किम का भारत में विलय (1975)
- सिक्किम को भारत में मिलाने हेतु पहली और चौथी अनुसूची में संशोधन किया गया।
- इसे संविधान संशोधन नहीं माना गया।
तेलंगाना का गठन (2014)
- आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 के तहत नया राज्य तेलंगाना अस्तित्व में आया।
जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन (2019)
- अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को अलग-अलग केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया।
- यह अनुच्छेद 3 और 4 के अंतर्गत किया गया।
सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण फैसले
-
एम. वीरप्पा मोइली बनाम भारत संघ (1956)
- निर्णय: अनुच्छेद 4 के तहत किए गए परिवर्तन संविधान संशोधन नहीं हैं।
-
बेरूबाड़ी यूनियन मामला (1960)
- निर्णय: भारत की सीमा से कोई क्षेत्र बाहर करने के लिए संविधान संशोधन आवश्यक है, लेकिन आंतरिक सीमाओं का पुनर्गठन केवल संसद के विधेयक से संभव है।
-
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन मामला (2019)
- निर्णय: संसद का कदम अनुच्छेद 3 और 4 के अंतर्गत वैध है।
एम. वीरप्पा मोइली बनाम भारत संघ (1956)
- निर्णय: अनुच्छेद 4 के तहत किए गए परिवर्तन संविधान संशोधन नहीं हैं।
बेरूबाड़ी यूनियन मामला (1960)
- निर्णय: भारत की सीमा से कोई क्षेत्र बाहर करने के लिए संविधान संशोधन आवश्यक है, लेकिन आंतरिक सीमाओं का पुनर्गठन केवल संसद के विधेयक से संभव है।
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन मामला (2019)
- निर्णय: संसद का कदम अनुच्छेद 3 और 4 के अंतर्गत वैध है।
विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण
- अनुच्छेद 4 भारत के संविधान को लचीला बनाता है।
- यह भारत के संघीय ढाँचे को सुदृढ़ और व्यावहारिक बनाए रखता है।
- हालाँकि, राज्यों की सहमति आवश्यक न होने के कारण, यह कभी-कभी विवाद का कारण भी बनता है।
- इसके बावजूद, राष्ट्रीय एकता और समय की आवश्यकताओं को देखते हुए यह प्रावधान अत्यंत उपयोगी साबित हुआ है।
निष्कर्ष
अनुच्छेद 4 ने भारत के संविधान को अद्वितीय लचीलापन प्रदान किया है। यही कारण है कि संसद ने समय-समय पर राज्यों की सीमाएँ बदलकर, नए राज्य बनाकर और पुनर्गठन करके भारतीय संघ को गतिशील और सशक्त बनाए रखा है। यह अनुच्छेद दर्शाता है कि भारत का संविधान केवल स्थिर दस्तावेज़ नहीं, बल्कि बदलते समय के साथ आगे बढ़ने वाला जीवंत ग्रंथ है।
जय संविधान! जय भारत!
✍️ — Written by Kaushal Asodiya
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