ECI की प्रेस कॉन्फ्रेंस पर उठे बड़े सवाल: क्या लोकतंत्र में पारदर्शिता खतरे में है?
लोकसभा चुनाव 2024: क्या चुनाव आयोग की प्रेस कॉन्फ्रेंस ने भरोसा बढ़ाया या सवाल और गहरे किए?
भारत का लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र माना जाता है। लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 के बाद उठे सवालों ने इस लोकतंत्र की नींव को हिला दिया है। विपक्ष ने चुनाव आयोग (ECI) पर गंभीर आरोप लगाए कि चुनाव में बड़े पैमाने पर धांधली हुई, जबकि मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) ज्ञानेश कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सारे आरोपों को खारिज कर दिया।
लेकिन क्या उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस भरोसा दिलाने में सफल रही? क्या दिए गए जवाब पर्याप्त और पारदर्शी थे? आइए पूरी कहानी को गहराई से समझते हैं।
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विपक्ष के गंभीर आरोप – सिर्फ राजनीति नहीं, आंकड़ों के साथ सवाल
कांग्रेस और विपक्ष का कहना है कि चुनावों में पारदर्शिता की कमी, फर्जी वोटिंग, और EVM की विश्वसनीयता सबसे बड़े मुद्दे रहे।
मुख्य आरोपों में शामिल हैं:
70 सीटों पर संदिग्ध वोटिंग पैटर्न – राहुल गांधी का दावा कि इतनी बड़ी संख्या में वोटिंग पैटर्न का अचानक बदलना बिना गड़बड़ी के असंभव है।
डुप्लीकेट और फर्जी वोटर लिस्ट – विपक्ष ने सबूत के तौर पर कई राज्यों में मृतकों के नाम लिस्ट में होने के आरोप लगाए।
VVPAT और EVM गड़बड़ी – विपक्ष ने 100% VVPAT काउंटिंग की मांग की, लेकिन आयोग ने सिर्फ 5 EVM पर सैंपलिंग को पर्याप्त बताया।
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CEC की प्रेस कॉन्फ्रेंस – क्या जवाब भरोसेमंद थे?
आइए एक-एक कर प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिए गए बयानों की समीक्षा करें।
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1. “हम पर झूठे आरोप, हम डरे नहीं”
हकीकत:
यह बयान सुनने में सख्त लगता है, लेकिन इसमें कोई फैक्चुअल डेटा नहीं था।
भरोसा कायम करने के लिए सिर्फ भावनात्मक डायलॉग नहीं, सीट-वाइज डेटा और ऑडिट रिपोर्ट पेश करनी चाहिए थी।
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2. “मतदाता सूची का सत्यापन BLO द्वारा किया गया”
हकीकत:
BLO का चुनाव आयोग पर सीधा नियंत्रण है, लेकिन वे स्थानीय दबाव में काम करते हैं।
अगर लाखों फर्जी नाम हटाए गए, तो उनकी सूची क्यों सार्वजनिक नहीं की गई? पारदर्शिता का मतलब है डाटा पब्लिक करना।
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3. “28,370 आपत्तियां निपटाई गईं”
हकीकत:
कुल वोटरों (90 करोड़) के मुकाबले यह संख्या गौण है।
राज्यवार डिटेल और आपत्तियों के निपटारे की प्रक्रिया का कोई खुलासा नहीं किया गया।
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4. “VVPAT सिस्टम पारदर्शी है”
हकीकत:
सिर्फ 5 मशीनों का मिलान करना, 100% ऑडिट की मांग को नकारना, पारदर्शिता नहीं है।
अगर आयोग को भरोसा है, तो हर विवादित सीट पर VVPAT का पब्लिक रिजल्ट क्यों नहीं?
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5. “हम पर कोई दबाव नहीं”
हकीकत:
आचार संहिता उल्लंघन पर सत्ता पक्ष को चेतावनी और विपक्ष पर कड़ी कार्रवाई – यह डबल स्टैंडर्ड क्यों?
अगर आयोग पर दबाव नहीं था, तो हर कार्रवाई में समानता क्यों नहीं दिखी?
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इतिहास क्या कहता है? ECI पर पहले भी उठे सवाल
यह पहली बार नहीं है जब चुनाव आयोग पर पक्षपात का आरोप लगा।
1977 और 1989 के चुनावों में भी आयोग की निष्पक्षता पर बहस हुई थी।
2019 लोकसभा चुनाव में भी EVM की विश्वसनीयता को लेकर विवाद हुआ।
सुप्रीम कोर्ट ने कई बार चुनाव आयोग की स्वतंत्रता पर चिंता जताई और पारदर्शिता बढ़ाने की बात कही।
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कानूनी पहलू और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश
2023 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि चुनाव आयोग को संवैधानिक संस्था के तौर पर जनता का भरोसा जीतना होगा।
अदालत ने आयोग की नियुक्ति प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए थे और चयन में पारदर्शिता की जरूरत बताई थी।
VVPAT पर भी कोर्ट ने कहा कि चुनाव प्रक्रिया पर अविश्वास को खत्म करना आयोग की जिम्मेदारी है।
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विपक्ष और विशेषज्ञों की राय
विपक्ष कहता है:
आयोग का रवैया “सत्तारूढ़ दल के प्रति नरम” और विपक्ष के प्रति सख्त रहा।
राहुल गांधी ने कहा, “अगर चुनाव आयोग इतना पारदर्शी है, तो हर VVPAT को क्यों नहीं गिना गया?”
विशेषज्ञों की राय:
कई चुनावी विश्लेषकों का मानना है कि आयोग का प्रेस कॉन्फ्रेंस “डैमेज कंट्रोल” था, न कि रियल क्लैरिटी।
चुनाव प्रक्रिया में भरोसा तभी बनेगा जब डेटा और प्रक्रिया दोनों ओपन हों।
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जनता का रुख और सोशल मीडिया का असर
ट्विटर (X) पर #CECResign और #ECIBiased जैसे हैशटैग लगातार ट्रेंड में रहे।
यूट्यूब और इंस्टाग्राम पर कई वायरल वीडियोज़ में फर्जी वोटिंग और गड़बड़ी के आरोपों को लेकर बहस हुई।
गूगल ट्रेंड्स दिखाते हैं कि “ECI controversy”, “EVM fraud” जैसे सर्च टर्म्स 2024 में चरम पर रहे।
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प्रेस कॉन्फ्रेंस क्यों फेल रही? (5 बड़ी वजह)
✔ कोई थर्ड-पार्टी ऑडिट रिपोर्ट नहीं पेश की गई।
✔ सीट-वाइज डेटा नहीं दिया गया।
✔ सोशल मीडिया पर उठे मुद्दों पर स्पष्ट जवाब नहीं।
✔ VVPAT पर 100% काउंटिंग का इनकार।
✔ जनता का भरोसा बढ़ाने के लिए कोई नई पारदर्शी पहल घोषित नहीं हुई।
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अब सवाल – आगे का रास्ता क्या है? (5 ठोस सुझाव)
1. 100% VVPAT ऑडिटिंग – खासकर विवादित सीटों पर।
2. मतदाता सूची का डिजिटल ओपन एक्सेस – ताकि हर नागरिक खुद वेरिफाई कर सके।
3. सुप्रीम कोर्ट मॉनिटरिंग – चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए।
4. ECI की जवाबदेही बढ़ाना – प्रेस कॉन्फ्रेंस से आगे बढ़कर पब्लिक डेटा डिस्क्लोज़र।
5. पारदर्शी नियुक्ति प्रक्रिया – चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राजनीतिक प्रभाव से मुक्त हो।
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निष्कर्ष: क्या प्रेस कॉन्फ्रेंस भरोसा जगा पाई?
स्पष्ट है कि चुनाव आयोग की प्रेस कॉन्फ्रेंस ने भरोसा बढ़ाने के बजाय और सवाल खड़े कर दिए।
लोकतंत्र में जवाबदेही सिर्फ भाषण से नहीं, बल्कि डेटा, पारदर्शिता और ऑडिट से आती है। अगर चुनाव आयोग को अपनी निष्पक्षता साबित करनी है, तो उसे सिर्फ कहने से नहीं, दिखाने से भरोसा जीतना होगा।
जनता का भरोसा ही लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है।
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आपका क्या मानना है? क्या चुनाव आयोग ने सही किया या पारदर्शिता की कमी है? अपनी राय कमेंट में लिखें।
Author: Kaushal Asodiya