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मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य: भारतीय संविधान की ताकत | Fundamental Rights & Duties in Indian Constitution

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संविधान में मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य: एक विस्तृत विश्लेषण भारतीय संविधान दुनिया का सबसे विस्तृत और प्रगतिशील संविधान माना जाता है। इसमें नागरिकों के लिए मौलिक अधिकार और कर्तव्यों की विशेष व्यवस्था की गई है। ये अधिकार और कर्तव्य भारत के प्रत्येक नागरिक के जीवन को सुरक्षित करने और देश के लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत करने के लिए आवश्यक हैं। इस लेख में, हम भारतीय संविधान में निहित मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों का विस्तृत विश्लेषण करेंगे। मौलिक अधिकार: नागरिकों की सुरक्षा की ढाल भारतीय संविधान के भाग 3 (अनुच्छेद 12-35) में मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया गया है। ये अधिकार प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्रता, समानता और गरिमा का जीवन जीने का अवसर प्रदान करते हैं। आइए, इन्हें विस्तार से समझते हैं: 1. समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18) अनुच्छेद 14 : कानून के समक्ष समानता का अधिकार देता है। अनुच्छेद 15 : धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान आदि के आधार पर भेदभाव को रोकता है। अनुच्छेद 16 : रोजगार के अवसरों में समानता सुनिश्चित करता है। अनुच्छेद 17 : अस्पृश्यता का अंत करता है और इसे अपराध घोषि...

Article 22: Arrest & Detention Laws in India | अनुच्छेद 22 - गिरफ्तारी और नजरबंदी के अधिकार

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संविधान, हमारी पहचान – 26 अनुच्छेद 22: गिरफ्तारी और नजरबंदी से सुरक्षा भारत का संविधान प्रत्येक नागरिक को न्यायपूर्ण प्रक्रिया के तहत स्वतंत्रता और सुरक्षा प्रदान करता है। अनुच्छेद 22 नागरिकों को गिरफ्तारी और नजरबंदी (Detention) के खिलाफ सुरक्षा देता है। यह अनुच्छेद सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति को बिना कानूनी प्रक्रिया के गिरफ्तार या हिरासत में नहीं रखा जा सकता। यह अनुच्छेद दो प्रमुख भागों में विभाजित है: 1️⃣ गिरफ्तारी के बाद कानूनी सुरक्षा 2️⃣ निरोध (Preventive Detention) से संबंधित प्रावधान इस लेख में हम अनुच्छेद 22 के संवैधानिक प्रावधानों, नागरिक अधिकारों, ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य, महत्वपूर्ण न्यायिक व्याख्याओं और इसके वर्तमान महत्व पर गहराई से चर्चा करेंगे। 📜 अनुच्छेद 22: संवैधानिक प्रावधान अनुच्छेद 22 के तहत छह मुख्य प्रावधान दिए गए हैं, जिनका उद्देश्य व्यक्ति की स्वतंत्रता को सुरक्षित करना है। 🔹 गिरफ्तारी के बाद कानूनी सुरक्षा (Clauses 1 & 2) 1️⃣ किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना अनिवार्य है। 2️⃣ बिना म...

भारतीय संविधान की विशेषताएँ: Why Indian Constitution is Most Powerful in the World?

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भारतीय संविधान की विशेषताएँ और इसकी अनूठी ताकत भारत का संविधान दुनिया का सबसे विस्तृत और व्यापक संविधान है, जो देश की लोकतांत्रिक संरचना को मजबूती प्रदान करता है। यह केवल एक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व का आधार है। इस लेख में हम भारतीय संविधान की विशेषताओं और इसकी अद्वितीय शक्ति को विस्तार से समझेंगे। संविधान की प्रस्तावना: आत्मा और मार्गदर्शक भारतीय संविधान की प्रस्तावना (Preamble) इसकी आत्मा मानी जाती है। इसमें भारत को एक संप्रभु (Sovereign), समाजवादी (Socialist), धर्मनिरपेक्ष (Secular), लोकतांत्रिक (Democratic) और गणराज्य (Republic) घोषित किया गया है। यह देश को एक ऐसी दिशा प्रदान करता है, जिसमें नागरिकों को न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व का अधिकार मिलता है। भारतीय संविधान की 10 प्रमुख विशेषताएँ 1️⃣ सबसे लंबा और विस्तृत संविधान भारत का संविधान 446 अनुच्छेदों, 25 भागों और 12 अनुसूचियों में विभाजित है। इसका निर्माण 2 साल 11 महीने 18 दिन में हुआ और यह 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। अन्य देशों की तुलना में यह सबसे बड़ा ल...

Article 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार | Right to Life & Personal Liberty in Indian Constitution

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🌟 हमारा संविधान, हमारी पहचान – 25 अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार भारत का संविधान हर नागरिक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Right to Life and Personal Liberty) का अधिकार देता है। यह अधिकार इतना गहरा और व्यापक है कि इसे अक्सर संविधान की आत्मा (Soul of the Constitution) कहा जाता है। अनुच्छेद 21 कहता है: "किसी व्यक्ति को उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जा सकता है।" इसका अर्थ यह है कि कोई भी सरकार, संस्था या व्यक्ति किसी नागरिक के जीवन या स्वतंत्रता को मनमाने ढंग से समाप्त नहीं कर सकता। यह प्रावधान केवल जीवित रहने का नहीं, बल्कि गरिमा (Dignity) और सम्मानपूर्ण जीवन जीने का अधिकार भी देता है। इस लेख में हम अनुच्छेद 21 के दायरे, इसके विस्तार, न्यायिक व्याख्याओं, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और वर्तमान प्रासंगिकता पर विस्तृत चर्चा करेंगे। 📜 अनुच्छेद 21 का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और विकास संविधान सभा की बहसों के दौरान अनुच्छेद 21 पर बहुत जोर दिया गया। शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने इसे संकीर्ण रूप...

Article 20: अपराध से सुरक्षा के अधिकार | Protection Against Crime in Indian Constitution

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🌟 हमारा संविधान, हमारी पहचान – 23 अनुच्छेद 20: अपराधों से सुरक्षा देने वाला मौलिक अधिकार भारत का संविधान केवल स्वतंत्रता और समानता ही नहीं देता, बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी नागरिक के साथ अन्यायपूर्ण आपराधिक कार्रवाई न हो। इसी सिद्धांत पर आधारित है अनुच्छेद 20 , जो हर नागरिक को आपराधिक मामलों में विशेष सुरक्षा प्रदान करता है। अक्सर देखा गया है कि निर्दोष व्यक्तियों को गलत तरीके से अपराधी ठहरा दिया जाता है या फिर कानून का दुरुपयोग कर उन्हें अनुचित सजा दी जाती है। अनुच्छेद 20 ऐसे ही अन्याय से नागरिकों को बचाता है और यह सुनिश्चित करता है कि न्यायिक प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष रहे। इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि अनुच्छेद 20 क्या है, इसके तीन प्रमुख प्रावधान कौन से हैं, इससे जुड़े महत्वपूर्ण केस लॉ और आज की परिस्थिति में इसकी प्रासंगिकता क्या है। 📜 अनुच्छेद 20 की मूलभूत बातें अनुच्छेद 20 भारतीय नागरिकों को तीन प्रमुख कानूनी सुरक्षा (Legal Protections) प्रदान करता है: 1️⃣ Ex Post Facto Law (पूर्वव्यापी कानून से संरक्षण) कोई व्यक्ति ऐसे अपराध के लिए...

Article 19: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतंत्र | Freedom of Speech in Indian Constitution

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हमारा संविधान, हमारी पहचान – 22 अनुच्छेद 19: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और नागरिकों के मौलिक अधिकार भारतीय संविधान के भाग 3 में दिए गए मौलिक अधिकारों में अनुच्छेद 19 सबसे महत्वपूर्ण अनुच्छेदों में से एक है। यह प्रत्येक नागरिक को कुछ बुनियादी स्वतंत्रताएँ प्रदान करता है , जो लोकतंत्र की आत्मा हैं। अनुच्छेद 19 स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति और व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करता है , लेकिन यह स्वतंत्रता पूर्ण रूप से असीमित नहीं है । आज के दौर में मीडिया, सोशल मीडिया, जन आंदोलनों, और व्यक्तिगत अभिव्यक्ति के संदर्भ में अनुच्छेद 19 का महत्व और भी बढ़ जाता है। इस लेख में हम अनुच्छेद 19 को विस्तार से समझेंगे, इसके प्रावधानों, सीमाओं और इससे जुड़े न्यायिक फैसलों पर चर्चा करेंगे। 📜 अनुच्छेद 19 क्या कहता है? अनुच्छेद 19 के तहत भारतीय नागरिकों को 6 प्रकार की स्वतंत्रताएँ (Freedoms) दी गई हैं: 1️⃣ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Speech and Expression) प्रत्येक नागरिक को अपनी राय रखने, उसे व्यक्त करने, और मीडिया, कला, साहित्य, या अन्य माध्यमों से अभिव्यक्ति करने का अधिकार है। यह स...

Article 18: उपाधियों का उन्मूलन | No Titles Concept in Indian Constitution Explained

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हमारा संविधान, हमारी पहचान – 21 अनुच्छेद 18: उपाधियों का उन्मूलन – समानता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम भारत का संविधान हर नागरिक के लिए समानता, स्वतंत्रता और न्याय सुनिश्चित करने वाला दस्तावेज है। इसी उद्देश्य से इसमें कई ऐसे प्रावधान जोड़े गए हैं जो विशेषाधिकार और भेदभाव की मानसिकता को समाप्त करते हैं। अनुच्छेद 18 इन्हीं प्रावधानों में से एक है, जो उपाधियों के उन्मूलन (Abolition of Titles) से संबंधित है। यह अनुच्छेद बताता है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी व्यक्ति को केवल जन्म, जाति, धर्म या किसी अन्य आधार पर विशेष दर्जा नहीं मिल सकता। इस लेख में हम अनुच्छेद 18 का गहन अध्ययन करेंगे—इसकी मूल भावना, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, न्यायालयीन फैसले, और आज के संदर्भ में इसकी प्रासंगिकता। 📜 अनुच्छेद 18 क्या कहता है? संविधान का अनुच्छेद 18 स्पष्ट करता है: "राज्य किसी भी व्यक्ति को कोई उपाधि (Title) प्रदान नहीं करेगा, सिवाय उन सैन्य और शैक्षिक उपाधियों के जो सरकार द्वारा दी जाती हैं।" अनुच्छेद 18 के चार प्रमुख प्रावधान 1️⃣ सरकारी उपाधियों पर प्रतिबंध – भारत सरकार किसी भ...

Article 17: Untouchability समाप्त, जानें भारतीय संविधान का Social Justice Mission

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हमारा संविधान, हमारी पहचान – 20 अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता का उन्मूलन और सामाजिक समानता की ओर एक कदम भारत के संविधान में अनुच्छेद 17 (Article 17) को एक ऐतिहासिक और क्रांतिकारी प्रावधान माना जाता है, क्योंकि यह अस्पृश्यता (Untouchability) को पूरी तरह समाप्त करता है और इसे दंडनीय अपराध घोषित करता है । भारत में सदियों से छुआछूत और सामाजिक भेदभाव की प्रथा चली आ रही थी, जिससे समाज के एक बड़े वर्ग को शिक्षा, मंदिरों, कुओं, सड़कों और अन्य सार्वजनिक सुविधाओं से वंचित कर दिया गया। संविधान निर्माताओं ने इसे गंभीर सामाजिक समस्या मानते हुए इसे खत्म करने के लिए अनुच्छेद 17 को शामिल किया । यह पोस्ट अनुच्छेद 17 की कानूनी स्थिति, ऐतिहासिक संदर्भ, महत्वपूर्ण न्यायिक फैसलों और सामाजिक प्रभाव पर विस्तृत जानकारी देगी। अनुच्छेद 17 क्या कहता है? ✅ "अस्पृश्यता का अंत किया जाता है और इसका कोई भी रूप कानूनन अमान्य होगा। अस्पृश्यता को लागू करना किसी भी रूप में दंडनीय अपराध होगा, जैसा कि विधि द्वारा निर्धारित किया जा सकता है।" 📌 अनुच्छेद 17 के मुख्य बिंदु: अस्पृश्यता पूरी तरह से...

Kunal Kamra Controversy: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सवाल या सियासी साजिश?

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कुणाल कामरा विवाद: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और हास्य के अधिकार पर एक गंभीर प्रश्न कुणाल कामरा, जो भारतीय स्टैंड-अप कॉमेडी सीन के एक प्रमुख चेहरा हैं, एक बार फिर विवादों के केंद्र में हैं। इस बार उनका निशाना महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे बने। हाल ही में मुंबई के खार स्थित 'हैबिटैट' कॉमेडी क्लब में एक शो के दौरान कुणाल कामरा ने शिंदे को लेकर एक पैरोडी गीत गाया, जिसमें उन्हें 'गद्दार' (देशद्रोही) कहा गया। यह व्यंग्य, जो शिंदे के उद्धव ठाकरे के खिलाफ किए गए विद्रोह पर आधारित था, विवाद का कारण बन गया और शिंदे गुट के समर्थकों ने इसका विरोध किया। इसके बाद, शिवसेना (शिंदे गुट) के कार्यकर्ताओं ने कॉमेडी क्लब में तोड़फोड़ की, और बीएमसी (बृहन्मुंबई नगर निगम) ने क्लब के कुछ हिस्सों को अवैध बताते हुए ध्वस्त कर दिया। इस घटना ने एक बार फिर भारत में हास्य कलाकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। 1. विवाद की शुरुआत कुणाल कामरा एक प्रसिद्ध स्टैंड-अप कॉमेडियन हैं, जिनकी नोक-झोंक और व्यंग्यात्मक शैली ने उन्हें भारत में एक बड़ा प्रशंसक वर्ग दिय...

Article 16: सरकारी नौकरियों में Equal Opportunity, Reservation System और Social Justice Explained

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हमारा संविधान, हमारी पहचान – 19 अनुच्छेद 16: सरकारी नौकरियों में समान अवसर और आरक्षण व्यवस्था भारत का संविधान केवल शासन का ढांचा तय नहीं करता, बल्कि यह हर नागरिक को समान अधिकार और अवसर देने की गारंटी भी देता है। इसी दिशा में अनुच्छेद 16 एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो सरकारी नौकरियों में समान अवसर और वंचित वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था सुनिश्चित करता है। यह अनुच्छेद न केवल योग्यता पर आधारित भर्ती को मजबूत करता है, बल्कि यह भी मानता है कि सदियों से वंचित रहे वर्गों को बराबरी पर लाने के लिए विशेष कदम उठाना जरूरी है। इसलिए इसमें अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है। आइए विस्तार से समझते हैं अनुच्छेद 16 के सभी प्रावधान, न्यायिक फैसले और इसके सामाजिक प्रभाव। 📜 अनुच्छेद 16: सरकारी नौकरियों में समान अवसर का अधिकार 1️⃣ अनुच्छेद 16(1) – समान अवसर का अधिकार ✅ राज्य के अधीन किसी भी सरकारी नौकरी में सभी नागरिकों को समान अवसर प्राप्त होंगे। 👉 इसका अर्थ है कि किसी भी व्यक्ति को ज...

Indian Judiciary में Collegium System की कमियां और NJAC का Analysis | Justice Verma Case से सीख

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       Photo credit - study iq ias भारतीय न्यायपालिका में कोलेजियम प्रणाली: एक गहन विश्लेषण और आलोचना भारत का लोकतंत्र न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर टिका हुआ है। न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण की प्रक्रिया इस स्वतंत्रता का महत्वपूर्ण हिस्सा है। वर्तमान समय में, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति कोलेजियम प्रणाली के माध्यम से होती है। यह प्रणाली न्यायपालिका की स्वायत्तता सुनिश्चित करती है, लेकिन इसके पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर गंभीर सवाल भी उठते हैं। हाल ही में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा मामले ने एक बार फिर कोलेजियम प्रणाली की कमियों को उजागर किया है। इस ब्लॉग में हम कोलेजियम प्रणाली के इतिहास, कामकाज, आलोचनाओं, NJAC (राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग) के प्रयास और यशवंत वर्मा मामले के उदाहरण के साथ एक संतुलित विश्लेषण करेंगे। कोलेजियम प्रणाली क्या है? कोलेजियम प्रणाली वह तंत्र है जिसके तहत सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण किया जाता है। इस प्रणाली में सरकार ...

Article 15 और भारतीय संविधान: जाति भेदभाव, SC/ST Act और Fundamental Rights की सच्चाई

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हमारा संविधान, हमारी पहचान – 18 भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15: भेदभाव के खिलाफ अधिकार, SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम और ‘Article 15’ फिल्म का सन्दर्भ भारत में जाति, धर्म, लिंग और जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव को समाप्त करने के लिए संविधान में अनुच्छेद 15 को शामिल किया गया। यह अनुच्छेद यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी नागरिक के साथ जातिगत या सामाजिक भेदभाव न हो और सभी को समान अधिकार मिलें । हालांकि, समाज में कमजोर और पिछड़े वर्गों के खिलाफ ऐतिहासिक अन्याय और अत्याचार को देखते हुए, सरकार ने "अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989" (SC/ST Act) भी लागू किया । यह कानून अनुच्छेद 15 के उद्देश्य को और मजबूत करता है और जातिगत हिंसा तथा भेदभाव को रोकने के लिए विशेष प्रावधान प्रदान करता है। यही विषय 2019 में आई हिंदी फिल्म ‘Article 15’ में भी उठाया गया था, जिसमें अनुच्छेद 15 के वास्तविक महत्व और जातिगत भेदभाव की सच्चाई को उजागर किया गया था । इस फिल्म ने समाज को यह सोचने पर मजबूर किया कि क्या हम आज भी जातिगत भेदभाव से पूरी तरह मुक्त हो पाए हैं?...

Article 14 of Indian Constitution in Hindi: समानता का अधिकार, Legal Protection & Important Judgments

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हमारा संविधान, हमारी पहचान – 17 भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14: समानता का अधिकार और इसका महत्व भारत का लोकतंत्र "समानता" के विचार पर टिका हुआ है। यदि किसी देश में नागरिकों के साथ भेदभाव किया जाए, तो वहां लोकतंत्र लंबे समय तक टिक नहीं सकता। इसी सोच को ध्यान में रखते हुए भारतीय संविधान ने अनुच्छेद 14 में समानता के अधिकार (Right to Equality) की गारंटी दी है। यह अनुच्छेद नागरिकों को दो अहम अधिकार देता है – कानून के समक्ष समानता (Equality before Law) विधि द्वारा समान संरक्षण (Equal Protection of Law) अनुच्छेद 14 यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है और राज्य सभी को न्यायसंगत अवसर प्रदान करेगा। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सभी के साथ हर परिस्थिति में एक जैसा व्यवहार होगा, बल्कि यह कि सभी को न्यायपूर्ण और तर्कसंगत व्यवहार मिले। अनुच्छेद 14: संविधान में क्या लिखा है? अनुच्छेद 14 कहता है: "राज्य भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधियों के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।" इसका सीधा अर्थ है: ...

बुद्ध धम्म और सामाजिक क्रांति: आधुनिक भारत में इसकी प्रासंगिकता | Buddha Dhamma & Social Revolution in Modern India

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बुद्ध धम्म और सामाजिक क्रांति: आज के भारत में इसकी प्रासंगिकता भारत एक ऐसा देश है, जहाँ विविध विचारधाराएँ और दार्शनिक परंपराएँ जन्मीं और विकसित हुईं। लेकिन यदि हम किसी एक विचारधारा को सामाजिक क्रांति और समानता का आधार मानें, तो निस्संदेह वह गौतम बुद्ध का धम्म (धर्म) है। आज के भारत में, जहाँ जाति, वर्ग और धर्म के नाम पर भेदभाव और असमानता बनी हुई है, वहाँ बुद्ध धम्म की प्रासंगिकता पहले से कहीं अधिक बढ़ जाती है। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भी बुद्ध धम्म को सामाजिक परिवर्तन और क्रांति का एक शक्तिशाली साधन माना। उन्होंने इसे केवल धार्मिक मान्यता के रूप में नहीं, बल्कि एक समानता-आधारित जीवनशैली के रूप में अपनाने का संदेश दिया। यह लेख इसी विषय पर केंद्रित है कि आज के भारत में बुद्ध धम्म की प्रासंगिकता क्यों और कैसे सामाजिक क्रांति का माध्यम बन सकती है। 1. बुद्ध धम्म का सार और उसके मूल सिद्धांत गौतम बुद्ध ने समाज में व्याप्त कुरीतियों, अंधविश्वासों और भेदभाव को चुनौती दी और लोगों को तर्क, करुणा और समानता की ओर बढ़ने का संदेश दिया। 1.1 चार आर्य सत्य (Four Noble Truths) दु:ख (Duk...

Mahad Satyagraha: Dr. Babasaheb Ambedkar की ऐतिहासिक क्रांति, दलित अधिकारों की जीत

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महाड सत्याग्रह: दलित स्वाभिमान और समानता की ऐतिहासिक लड़ाई 20 मार्च का ऐतिहासिक महत्व भारत के इतिहास में 20 मार्च का दिन सामाजिक न्याय और समानता की लड़ाई का प्रतीक है। यह वही दिन है जब डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के नेतृत्व में महाड सत्याग्रह हुआ था। यह आंदोलन न केवल पानी पीने के अधिकार के लिए था, बल्कि यह छुआछूत और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ एक क्रांतिकारी कदम था। महाड सत्याग्रह भारतीय समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव और छुआछूत के खिलाफ एक सशक्त विरोध था, जिसने समाज में समानता और मानवाधिकारों के लिए नई राहें खोलीं। यह आंदोलन दलितों के आत्मसम्मान और स्वतंत्रता का उद्घोष था। महाड सत्याग्रह की पृष्ठभूमि ब्रिटिश शासन के दौरान भी भारतीय समाज में जातिगत भेदभाव गहराई से व्याप्त था। अछूत माने जाने वाले दलितों को सार्वजनिक स्थानों, विशेष रूप से पानी के तालाबों, कुओं और मंदिरों में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी। महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में स्थित महाड शहर में ‘चवदार तालाब’ था, जो सरकारी संपत्ति थी, लेकिन वहां केवल ऊँची जातियों के लोगों को ही पानी पीने की अनुमति थी। 1923 में बॉम्बे लेज...