बुद्ध धम्म और सामाजिक क्रांति: आधुनिक भारत में इसकी प्रासंगिकता | Buddha Dhamma & Social Revolution in Modern India
बुद्ध धम्म और सामाजिक क्रांति: आज के भारत में इसकी प्रासंगिकता
भारत एक ऐसा देश है, जहाँ विविध विचारधाराएँ और दार्शनिक परंपराएँ जन्मीं और विकसित हुईं। लेकिन यदि हम किसी एक विचारधारा को सामाजिक क्रांति और समानता का आधार मानें, तो निस्संदेह वह गौतम बुद्ध का धम्म (धर्म) है। आज के भारत में, जहाँ जाति, वर्ग और धर्म के नाम पर भेदभाव और असमानता बनी हुई है, वहाँ बुद्ध धम्म की प्रासंगिकता पहले से कहीं अधिक बढ़ जाती है।
डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भी बुद्ध धम्म को सामाजिक परिवर्तन और क्रांति का एक शक्तिशाली साधन माना। उन्होंने इसे केवल धार्मिक मान्यता के रूप में नहीं, बल्कि एक समानता-आधारित जीवनशैली के रूप में अपनाने का संदेश दिया। यह लेख इसी विषय पर केंद्रित है कि आज के भारत में बुद्ध धम्म की प्रासंगिकता क्यों और कैसे सामाजिक क्रांति का माध्यम बन सकती है।
1. बुद्ध धम्म का सार और उसके मूल सिद्धांत
गौतम बुद्ध ने समाज में व्याप्त कुरीतियों, अंधविश्वासों और भेदभाव को चुनौती दी और लोगों को तर्क, करुणा और समानता की ओर बढ़ने का संदेश दिया।
1.1 चार आर्य सत्य (Four Noble Truths)
- दु:ख (Dukkha) – जीवन में दु:ख अपरिहार्य है।
- दु:ख समुदय (Samudaya) – इस दु:ख का कारण तृष्णा (इच्छा) है।
- दु:ख निरोध (Nirodha) – तृष्णा को समाप्त किया जा सकता है।
- अष्टांगिक मार्ग (Magga) – दु:ख से मुक्ति का मार्ग अष्टांगिक मार्ग है।
1.2 अष्टांगिक मार्ग (Eightfold Path)
यह मार्ग व्यक्ति को नैतिकता, अनुशासन और आत्मज्ञान की ओर ले जाता है:
- सम्यक दृष्टि (Right View)
- सम्यक संकल्प (Right Intention)
- सम्यक वाणी (Right Speech)
- सम्यक कर्म (Right Action)
- सम्यक आजीविका (Right Livelihood)
- सम्यक प्रयास (Right Effort)
- सम्यक स्मृति (Right Mindfulness)
- सम्यक समाधि (Right Concentration)
2. डॉ. अंबेडकर और बुद्ध धम्म
डॉ. भीमराव अंबेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी। उन्होंने इसे सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन का सशक्त साधन बताया।
2.1 अंबेडकर की दृष्टि में बुद्ध धम्म
- समानता का संदेश – जाति-प्रथा का खंडन और सबको बराबरी का दर्जा।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण – तर्क और अनुभव पर आधारित जीवनशैली।
- नैतिकता और सामाजिक न्याय – करुणा और न्याय से समाज का निर्माण।
2.2 संविधान और बुद्ध धम्म
अंबेडकर ने संविधान बनाते समय बुद्ध से प्रेरणा ली। समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व की धाराएँ सीधे बुद्ध के विचारों से मेल खाती हैं।
3. आज के भारत में बुद्ध धम्म की प्रासंगिकता
भारत में अभी भी जातिवाद, असमानता और हिंसा जैसी समस्याएँ मौजूद हैं। बुद्ध धम्म इनके समाधान में मददगार हो सकता है।
3.1 जातिवाद और छुआछूत के विरुद्ध
बुद्ध ने कहा था – “व्यक्ति का सम्मान उसकी जाति से नहीं, बल्कि उसके कर्मों से होता है।”
आज भी यदि समाज यह विचार अपनाए तो जातिवाद खत्म हो सकता है।
3.2 महिलाओं के अधिकार और समानता
बुद्ध ने महिला संघ (भिक्षुणी संघ) की स्थापना कर महिलाओं को शिक्षा और आध्यात्मिकता में समान अवसर दिए। यह आज भी महिलाओं की समानता के संघर्ष में प्रेरक है।
3.3 धार्मिक कट्टरता और सहिष्णुता
धर्म के नाम पर बढ़ती हिंसा को बुद्ध धम्म की सहिष्णुता और करुणा ही संतुलित कर सकती है।
3.4 नैतिकता और करुणा पर आधारित समाज
यदि समाज सत्य, अहिंसा और करुणा पर चले तो भ्रष्टाचार और अपराध स्वतः घट सकते हैं।
3.5 शिक्षा और जागरूकता
बुद्ध और अंबेडकर दोनों ने शिक्षा को मुक्ति का सबसे बड़ा हथियार बताया। शिक्षा ही सामाजिक बदलाव की कुंजी है।
4. भविष्य की सामाजिक क्रांति और बुद्ध धम्म
4.1 प्रचार-प्रसार
स्कूलों, कॉलेजों और डिजिटल माध्यमों से बुद्ध धम्म को युवाओं तक पहुँचाया जाए।
4.2 सामाजिक आंदोलनों में समावेश
दलित, महिला और मानवाधिकार आंदोलनों को बुद्ध धम्म से प्रेरणा लेनी चाहिए।
4.3 जातिविहीन समाज
अंतर्जातीय विवाह और शिक्षा के माध्यम से जातिविहीन समाज की ओर बढ़ना चाहिए।
4.4 डिजिटल जागरूकता
सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर बुद्ध के विचारों को फैलाना अत्यंत आवश्यक है।
निष्कर्ष
बुद्ध धम्म केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि समानता, न्याय और सामाजिक क्रांति का मार्ग है। आज के भारत में जातिवाद, असमानता और हिंसा जैसी समस्याओं का समाधान बुद्ध धम्म में निहित है।
यदि हमें एक जातिविहीन, न्यायसंगत और करुणा-आधारित समाज बनाना है, तो बुद्ध धम्म की शिक्षाओं से बड़ा कोई मार्गदर्शन नहीं हो सकता।
Kaushal Asodiya