Operation Sindoor: कैसे Indian Media ने फैलाया Fake News और World Media ने दिखाया सच | Media Propaganda Exposed




ऑपरेशन सिंदूर: जब भारतीय मीडिया ने दिखाया भ्रम, और अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने बताया सच


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प्रस्तावना: सूचना का युद्ध और सच की तलाश

भारत में जब भी कोई सैन्य ऑपरेशन होता है, खासकर अगर वह सीमा पार या आतंकवाद से जुड़ा हो, तो देश की निगाहें न्यूज़ चैनलों की ओर जाती हैं। लेकिन क्या हम जो देख रहे होते हैं, वह सच होता है?
"ऑपरेशन सिंदूर" के दौरान जो कुछ भी हुआ, उसने भारतीय मीडिया की भूमिका को कटघरे में खड़ा कर दिया। वहीं, अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने एक बार फिर दिखा दिया कि पत्रकारिता का असली मतलब क्या होता है—सत्य, संतुलन और संवेदनशीलता।

इस लेख में हम गहराई से समझेंगे कि कैसे भारतीय मीडिया ने ऑपरेशन सिंदूर को टीआरपी का तमाशा बना दिया, और कैसे वर्ल्ड मीडिया ने ज़िम्मेदारी के साथ सच्चाई को सामने रखा।


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ऑपरेशन सिंदूर क्या था?

ऑपरेशन सिंदूर, जम्मू-कश्मीर के नियंत्रण रेखा से सटे संवेदनशील इलाकों में किया गया एक गुप्त सैन्य अभियान था, जिसका उद्देश्य सीमा पार से होने वाली घुसपैठ और आतंकी गतिविधियों को रोकना था। हालांकि सरकार की ओर से इस ऑपरेशन के बारे में अधिक जानकारी नहीं दी गई, लेकिन मीडिया में यह खबर जंगल की आग की तरह फैल गई।


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भारतीय मीडिया: जब पत्रकारिता बन गई राष्ट्रवाद की नौटंकी

1. बिना पुष्टि के "ब्रेकिंग न्यूज़"

ऑपरेशन शुरू होते ही टीवी चैनलों ने "50 आतंकी मारे गए", "दुश्मन के ठिकाने तबाह", "भारत का करारा जवाब" जैसे शीर्षकों से खबरें चलानी शुरू कर दीं।
अजीब बात यह थी कि रक्षा मंत्रालय की ओर से कोई आधिकारिक बयान तक जारी नहीं हुआ था। इसके बावजूद रिपोर्टर्स स्टूडियो से "युद्ध के मैदान" का नाटकीय दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे।

2. पुराने वीडियो, नया तमाशा

कुछ चैनलों ने 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक या सैन्य अभ्यास के वीडियो को "ऑपरेशन सिंदूर का लाइव एक्शन" कहकर दिखाया। सोशल मीडिया पर इन क्लिप्स को करोड़ों बार देखा गया, और लोगों को यकीन हो गया कि वह "असली" युद्ध देख रहे हैं।

सच्चाई? BBC और Bellingcat ने पुष्टि की कि इन क्लिप्स का इस ऑपरेशन से कोई संबंध नहीं था।

3. सवाल पूछना = देशद्रोह?

जो भी पत्रकार, विशेषज्ञ या नागरिक इस ऑपरेशन की जानकारी या प्रभाव पर सवाल उठाता दिखा, उसे "देशविरोधी" कह दिया गया। डिबेट शो में शोर, चीख और राष्ट्रगीत की धुनों ने विवेक को पूरी तरह दबा दिया।


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अंतरराष्ट्रीय मीडिया: जब रिपोर्टिंग में बची रह गई ईमानदारी

1. तथ्य पहले, सुर्खियाँ बाद में

Reuters, BBC, Al Jazeera, The New York Times, और The Guardian जैसे मीडिया संस्थानों ने ऑपरेशन सिंदूर की रिपोर्टिंग की, लेकिन तब जब उन्हें पुष्टि मिल गई।
उन्होंने स्थानीय पत्रकारों से बात की, उपग्रह चित्रों का विश्लेषण किया और संबंधित मंत्रालयों से प्रतिक्रिया ली।

2. फेक वीडियो की जांच

Reuters Fact Check ने 5 प्रमुख वीडियो का विश्लेषण कर बताया कि ये क्लिप्स या तो पुराने थे या अन्य देशों के युद्धों से जुड़े थे (जैसे अफगानिस्तान, इराक)। Bellingcat ने भी इनके स्रोत ट्रैक कर साबित किया कि ये "fabricated visuals" थे।

3. मानवीय पहलू को प्राथमिकता

अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों ने यह नहीं दिखाया कि कितने दुश्मन मारे गए, बल्कि उन्होंने यह बताया कि इस ऑपरेशन से स्थानीय लोगों पर क्या प्रभाव पड़ा —

कितने लोगों को घर छोड़ना पड़ा

कितनी स्कूलें बंद हुईं

क्या कोई मानवीय नुकसान हुआ?


Al Jazeera ने लिखा: “In any military operation, civilians are the silent victims, and their stories deserve attention.”


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मीडिया और लोकतंत्र: जब फ्री प्रेस सवालों से डरने लगे

The Guardian ने अपनी रिपोर्ट में लिखा:

> “Indian media has transformed war reporting into a high-decibel reality show, prioritizing TRP over truth.”



जब पत्रकारिता का मकसद सत्ता को सवालों के कटघरे में खड़ा करना हो, लेकिन वह खुद सत्ता का प्रचारक बन जाए, तब लोकतंत्र के लिए खतरा पैदा होता है। प्रेस की स्वतंत्रता केवल एक अधिकार नहीं है, यह जनता के लिए एक संरक्षण कवच है।


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सोशल मीडिया और IT सेल: झूठ का सुपरस्प्रेडर

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों और तस्वीरों की बाढ़ आ गई।

“200 पाक सैनिक ढेर”

“पाकिस्तान में खौफ का माहौल”

“भारत ने 10 किमी अंदर घुसकर हमला किया”


इन दावों की कोई पुष्टि नहीं थी। लेकिन फेक IT सेल अकाउंट्स, ट्रोल्स, और व्हाट्सएप ग्रुप्स ने इन्हें इतना शेयर किया कि वह “सच” बन गए।

परिणाम? जनता भ्रम में रही, सेना की छवि पर असर पड़ा, और लोकतांत्रिक विमर्श कमजोर हुआ।


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एक मिसाल: कैसे BBC ने जमीनी सच्चाई सामने रखी

BBC World Service की टीम ने ऑपरेशन सिंदूर के एक हफ्ते बाद स्थानीय गांवों में जाकर लोगों से बातचीत की।
रिपोर्ट में बताया गया कि:

स्थानीय लोगों को ऑपरेशन की भनक तक नहीं थी

कुछ गांवों में डर के कारण महिलाएं बच्चों के साथ घर से बाहर नहीं निकल रही थीं

कई ग्रामीणों ने बताया कि मीडिया में जो दिखाया जा रहा है, उसका उनकी ज़िंदगी से कोई लेना-देना नहीं है


यही होती है ग्राउंड रिपोर्टिंग। यही होती है पत्रकारिता।


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निष्कर्ष: पत्रकारिता को चाहिए आत्मनिरीक्षण, जनता को चाहिए विवेक

ऑपरेशन सिंदूर कोई फिल्मी स्क्रिप्ट नहीं थी। यह एक सैन्य कार्रवाई थी, जिसके असली असर जानने के लिए पत्रकारों को जमीन पर जाना चाहिए था, न कि स्टूडियो में CGI और फेक फुटेज से युद्ध रचाना चाहिए था।

भारतीय मीडिया का एक बड़ा हिस्सा अब सवाल पूछने से डरता है, सच बताने से कतराता है और सत्ता की जी-हुजूरी करता है। वहीं, अंतरराष्ट्रीय मीडिया अब भारतीय दर्शकों के लिए भी भरोसेमंद स्रोत बनता जा रहा है।

अब ज़रूरत है कि:

मीडिया अपनी भूमिका को फिर से परिभाषित करे

जनता खबरों को आँख मूंद कर न माने

सरकार पारदर्शिता को बढ़ावा दे

न्यूज़ चैनल व्यूअरशिप नहीं, विश्वसनीयता को प्राथमिकता दें


क्योंकि जब मीडिया अपनी रीढ़ खो देता है, तो लोकतंत्र की नींव हिलने लगती है।


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सुझावित आंतरिक लिंकिंग:

फेक न्यूज़ से कैसे बचें: कुछ आसान उपाय

भारतीय पत्रकारिता का भविष्य: चुनौतियाँ और समाधान

सामाजिक मीडिया बनाम मुख्यधारा मीडिया: कौन ज़्यादा विश्वसनीय?



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स्रोत:

BBC World Report (May 2025)

The Guardian: India’s Operation Sindoor: Behind the TV Hype

Reuters Fact Check (May 2025)

Bellingcat Verification Reports

Al Jazeera: Media and Nationalism in India

Press Trust of India (PTI)



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लेखक: Kaushal Asodiya



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