Operation Sindoor: कैसे Indian Media ने फैलाया Fake News और World Media ने दिखाया सच | Media Propaganda Exposed





ऑपरेशन सिंदूर: जब भारतीय मीडिया ने फैलाई झूठी खबरें और वर्ल्ड मीडिया ने दिखाया सच का आईना
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भूमिका:
"ऑपरेशन सिंदूर" के नाम पर जब भारतीय सेना ने जम्मू-कश्मीर के संवेदनशील इलाकों में आतंकवाद के खिलाफ एक महत्वपूर्ण सैन्य कार्रवाई को अंजाम दिया, तब पूरे देश का ध्यान इस ऑपरेशन पर केंद्रित हो गया। यह एक ऐसा अवसर था जब मीडिया को तथ्यों के साथ निष्पक्ष रिपोर्टिंग करनी चाहिए थी ताकि देश की जनता सही जानकारी तक पहुंच सके। लेकिन दुर्भाग्यवश, भारतीय मीडिया का बड़ा हिस्सा इस जिम्मेदारी को निभाने में विफल रहा। फेक न्यूज़, प्रोपेगेंडा, और उन्मादी राष्ट्रवाद से भरी रिपोर्टिंग ने एक बार फिर साबित कर दिया कि भारत की मीडिया अब खबर देने का माध्यम नहीं रही, बल्कि वह सत्ता और टीआरपी के खेल में एक मोहरा बन गई है।

जहां एक ओर भारतीय मीडिया ने बिना किसी पुष्टि के अतिरंजित दावे और भ्रामक वीडियो प्रसारित किए, वहीं अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों ने तथ्यों की जांच के साथ संतुलित रिपोर्टिंग की। इस लेख में हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि कैसे भारतीय मीडिया ने ऑपरेशन सिंदूर को लेकर गुमराह करने वाली खबरें चलाईं, और वर्ल्ड मीडिया ने इसके विपरीत कैसे ज़िम्मेदार पत्रकारिता का उदाहरण दिया।


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भारतीय मीडिया की भूमिका: सनसनी, राष्ट्रवाद और प्रोपेगेंडा

ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत होते ही भारतीय मीडिया चैनलों पर एक तरह की होड़ शुरू हो गई – कौन सबसे पहले "एक्सक्लूसिव" दिखाएगा, कौन सबसे ज़्यादा "वीरता" की कहानियाँ सुनाएगा, और कौन "दुश्मन को सबक सिखाने" की सबसे प्रभावशाली स्क्रिप्ट पेश करेगा।

1. अपुष्ट आँकड़े और फर्जी दावे:
ऑपरेशन के पहले ही दिन, कुछ लोकप्रिय हिंदी और अंग्रेजी न्यूज चैनलों ने बिना किसी आधिकारिक पुष्टि के यह दावा किया कि “50 से ज्यादा आतंकी मारे गए।” एक चैनल ने तो यह भी कहा कि “पूरी आतंकी चौकी को तबाह कर दिया गया है।” जबकि उस समय सेना की ओर से कोई आधिकारिक आंकड़ा तक जारी नहीं किया गया था।

2. पुराने वीडियो का उपयोग:
कुछ चैनलों ने पुराने मिलिट्री अभ्यास (military drills) और 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक के फुटेज को “ऑपरेशन सिंदूर का लाइव वीडियो” बता कर दिखाया। ये वीडियो सोशल मीडिया पर भी वायरल हुए, और जनता ने बिना जांचे उन पर विश्वास कर लिया।

3. उन्मादी राष्ट्रवाद:
बहसों में राष्ट्रवाद को इस हद तक बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया कि हर सवाल उठाने वाला “देशद्रोही” ठहराया गया। किसी भी विशेषज्ञ को बुलाकर सैन्य दृष्टिकोण नहीं रखा गया, बल्कि टीवी स्टूडियो "युद्ध के मैदान" बन गए।

4. राजनीतिक एजेंडा:
कुछ चैनलों ने इस ऑपरेशन को एक विशेष पार्टी की “साहसी नीति” का परिणाम बताते हुए उसका महिमामंडन किया, जबकि विपक्षी नेताओं को सेना का मनोबल गिराने वाला बताया गया, भले ही उन्होंने शांति और पारदर्शिता की मांग की हो।


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वर्ल्ड मीडिया का रुख: जिम्मेदारी, सटीकता और मानवता

वहीं जब विश्व मीडिया की रिपोर्टिंग पर नजर डाली गई, तो उसमें भारतीय मीडिया के विपरीत संतुलन और सच्चाई नजर आई।

1. पुष्टि के बाद ही खबरें:
BBC, Reuters, The Guardian, Al Jazeera, New York Times जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों ने ऑपरेशन सिंदूर पर खबरें प्रकाशित कीं, लेकिन केवल तब जब उन्हें आधिकारिक सूत्रों से पुष्टि मिल गई। उन्होंने स्थानीय संवाददाताओं से संपर्क कर, उपग्रह चित्रों (satellite images) की मदद ली और ग्राउंड रिपोर्टिंग की।

2. फर्जी वीडियो की पोल खोली:
Reuters Fact Check और BBC Verify ने स्पष्ट रूप से बताया कि भारतीय चैनलों द्वारा दिखाए गए कई वीडियो पुराने थे और उनमें से कुछ का ऑपरेशन सिंदूर से कोई लेना-देना नहीं था। Bellingcat जैसे स्वतंत्र सत्यापन संस्थान ने यह साबित किया कि कुछ फुटेज अफगानिस्तान और इराक युद्ध के दौरान के थे जिन्हें “भारतीय सेना की कार्रवाई” बताया गया।

3. मानवीय दृष्टिकोण:
अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने सिर्फ ऑपरेशन की सफलता या सैन्य रणनीति पर नहीं, बल्कि इससे प्रभावित नागरिकों की स्थिति, स्थानीय तनाव, और मानवाधिकारों के सवालों पर भी ध्यान केंद्रित किया। यह पत्रकारिता का वह रूप था जो सूचना के साथ-साथ संवेदना को भी महत्व देता है।

4. भारतीय मीडिया की आलोचना:
The Guardian ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा, “Indian media has transformed war reporting into a high-decibel reality show, prioritizing TRP over truth.”
Al Jazeera ने भारत में पत्रकारिता की गिरती स्वतंत्रता और मीडिया पर सरकार के प्रभाव को उजागर करते हुए कहा, “India’s press freedom is shrinking under the garb of aggressive nationalism.”


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फेक न्यूज़ का जाल: जनता को गुमराह करने का तंत्र

ऑपरेशन सिंदूर के समय सोशल मीडिया पर एक बाढ़ आ गई फर्जी वीडियो, फोटो और भड़काऊ पोस्ट्स की। कई फर्जी IT सेल और ट्रोल अकाउंट्स ने इस ऑपरेशन को लेकर झूठ फैलाया, जैसे कि “पूरा पाकिस्तान कांप गया है,” या “भारत ने दुश्मन देश के 200 सैनिकों को मार गिराया।”

इन दावों का न कोई आधार था, न कोई स्रोत, लेकिन फिर भी उन्हें मुख्यधारा मीडिया ने भी परोक्ष रूप से बढ़ावा दिया। यह सिर्फ एक ऑपरेशन की छवि को गलत रूप में पेश करने का मामला नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र की बुनियाद — सत्य और पारदर्शिता — पर हमला है।


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अंतरराष्ट्रीय प्रभाव और भारत की छवि

जब विश्व मीडिया भारतीय मीडिया की झूठी रिपोर्टिंग को उजागर करता है, तो वह केवल पत्रकारिता पर टिप्पणी नहीं कर रहा होता, बल्कि भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर भी सवाल उठा रहा होता है। फ्री प्रेस किसी भी लोकतंत्र की रीढ़ होती है। लेकिन जब प्रेस सत्ता का उपकरण बन जाए, तो वह न केवल जनता को गुमराह करता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी देश की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाता है।


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निष्कर्ष: पत्रकारिता की नैतिकता की पुनः स्थापना की ज़रूरत

ऑपरेशन सिंदूर एक संवेदनशील और रणनीतिक सैन्य प्रयास था। ऐसे समय में मीडिया की भूमिका बेहद जिम्मेदारी भरी होनी चाहिए थी। लेकिन भारतीय मीडिया का एक बड़ा वर्ग इस कसौटी पर असफल रहा। इसके विपरीत विश्व मीडिया ने एक बार फिर यह दिखा दिया कि पत्रकारिता कैसे की जाती है — निष्पक्ष, संवेदनशील और तथ्यों के आधार पर।

हमें यह स्वीकार करना होगा कि जब मीडिया अपनी स्वतंत्रता छोड़कर प्रोपेगेंडा और सत्ता के साथ खड़ा होता है, तब वह जनता के लिए खतरा बन जाता है। अब समय है कि भारतीय मीडिया आत्मनिरीक्षण करे, और जनता भी खबरों को आंख मूंद कर नहीं बल्कि सोच-समझकर ग्रहण करना सीखे।


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स्रोत:

BBC World Report (May 2025)

The Guardian: “India’s Operation Sindoor: Behind the TV Hype”

Reuters Fact Check: “Misleading Videos Circulate in Indian Newsrooms”

Al Jazeera: “Media and Nationalism in India: A Growing Concern”

Bellingcat Verification Reports (2025)

Press Trust of India (PTI)



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