Sardar Udham Singh Biography in Hindi | जलियांवाला बाग कांड & Revenge Story
सरदार उधम सिंह: जलियांवाला बाग के प्रतिशोध से शहादत तक एक क्रांतिकारी की अमर कहानी
लेखक: Kaushal Asodiya
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भूमिका: जब एक गोली ने इतिहास बदल दिया
इतिहास में कुछ ऐसे पल होते हैं जो पीढ़ियों तक लोगों के दिलों में जिंदा रहते हैं। 13 मार्च 1940 ऐसा ही एक दिन था, जब लंदन के एक हॉल में गूंजती गोलियों ने ब्रिटिश साम्राज्य को झकझोर दिया। ये गोलियां किसी साधारण व्यक्ति ने नहीं चलाई थीं—यह काम था सरदार उधम सिंह का, एक ऐसा नाम जो आज भी देशभक्ति, साहस और संकल्प का प्रतीक है।
उधम सिंह का जीवन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की सबसे प्रेरणादायक कहानियों में से एक है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे एक साधारण पंजाबी युवक ने जलियांवाला बाग की त्रासदी को अपने जीवन का मक़सद बनाया और वर्षों बाद उसका प्रतिशोध लिया।
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1️⃣ जन्म और प्रारंभिक जीवन: दुखों से भरा बचपन
सरदार उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में हुआ था। उनके माता-पिता – टहल सिंह और नरैन कौर – सामान्य परिवार से थे। पिता रेलवे क्रॉसिंग पर चौकीदारी करते थे, और परिवार का जीवन बेहद साधारण था।
लेकिन किस्मत残य नहीं रही। जब उधम सिंह मात्र 7 साल के थे, उनके माता-पिता का देहांत हो गया। वे और उनके बड़े भाई मुक्ता सिंह को अमृतसर के सेंट्रल खालसा अनाथालय भेज दिया गया। यहीं पर उनका नाम शेर सिंह से बदलकर उधम सिंह रख दिया गया।
एक गुमनाम बच्चा, जो भविष्य में इतिहास बनाएगा
अनाथ होने के बावजूद उधम सिंह का आत्मबल कभी नहीं टूटा। अनाथालय के अनुशासन और शिक्षा ने उनके व्यक्तित्व को आकार दिया। शायद यह कठिन बचपन ही था, जिसने उन्हें लोहे जैसा मजबूत बनाया।
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2️⃣ जलियांवाला बाग हत्याकांड: जिसने उधम सिंह की आत्मा को झकझोरा
13 अप्रैल 1919 – बैसाखी का दिन, जब हज़ारों भारतीय अमृतसर के जलियांवाला बाग में इकट्ठा हुए थे। उद्देश्य था रोलेट एक्ट के विरोध में शांतिपूर्ण सभा। लेकिन तभी जनरल डायर के आदेश पर ब्रिटिश सैनिकों ने गोलियां चलानी शुरू कर दीं।
नरसंहार जिसने एक क्रांतिकारी को जन्म दिया
लगभग 1000 से अधिक लोग मारे गए, और हजारों घायल हुए। उधम सिंह इस भीषण त्रासदी के चश्मदीद गवाह थे। उन्होंने कई घायलों की मदद की। लेकिन अंदर ही अंदर उन्होंने प्रतिज्ञा ली — “मैं इस क्रूरता का बदला जरूर लूंगा।”
यह सिर्फ प्रतिज्ञा नहीं, उनका जीवन लक्ष्य बन गया।
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3️⃣ क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत: भगत सिंह से प्रेरणा
जलियांवाला बाग के बाद, उधम सिंह पूरी तरह से आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़े। उन्होंने भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद जैसे क्रांतिकारियों से संपर्क किया और हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) में शामिल हो गए।
दुनिया भर में क्रांति की आग फैलाने का मिशन
उधम सिंह भारत छोड़कर विदेशों में जाकर आज़ादी की अलख जगाने लगे। उन्होंने:
अफगानिस्तान, अफ्रीका, अमेरिका, और यूरोप की यात्रा की
ग़दर पार्टी से जुड़े
कई देशों में ब्रिटिश राज के खिलाफ लोगों को संगठित किया
उन्होंने गुप्त तरीके से हथियार और दस्तावेज़ जुटाए और अपने मिशन के लिए पूरी दुनिया को रणभूमि बना दिया।
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4️⃣ माइकल ओ'डायर की हत्या: प्रतिशोध का ऐतिहासिक दिन
4.1 कौन था माइकल ओ'डायर?
माइकल ओ'डायर ब्रिटिश शासन के दौरान पंजाब का लेफ्टिनेंट गवर्नर था। उसने जनरल डायर की कार्रवाइयों का समर्थन किया था और जलियांवाला बाग हत्याकांड का सार्वजनिक रूप से बचाव किया।
4.2 हत्या की योजना
उधम सिंह ने लगभग 21 वर्षों तक इस क्षण की प्रतीक्षा की। अंततः 13 मार्च 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की बैठक चल रही थी।
उधम सिंह ने वहाँ छिपाकर लाई गई रिवॉल्वर से दो गोलियां चलाईं, जिससे माइकल ओ'डायर की मौके पर ही मृत्यु हो गई।
4.3 गिरफ्तारी और बयान
हत्या के तुरंत बाद उधम सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। उनसे पूछताछ की गई, तो उन्होंने गर्व से कहा:
> “मैंने जलियांवाला बाग के निर्दोषों की हत्या का बदला लिया है। मैं अपने देश के लिए मरने को तैयार हूं।”
उन पर 1861 के मर्डर एक्ट के तहत मुकदमा चला। उन्हें दोषी ठहराया गया और फांसी की सज़ा सुनाई गई।
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5️⃣ अंतिम बलिदान: मृत्यु जो अमरता में बदल गई
31 जुलाई 1940 को, लंदन की पेंटनविले जेल में सरदार उधम सिंह को फांसी दे दी गई।
लेकिन उनकी शहादत व्यर्थ नहीं गई। यह घटना दुनिया भर में चर्चा का विषय बनी और भारत में आज़ादी की भावना को और मजबूती मिली।
अस्थियों की घर वापसी
1974 में भारत सरकार ने उनका अस्थि अवशेष भारत वापस मंगवाया। उन्हें पूरे सम्मान के साथ पंजाब में दफनाया गया।
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6️⃣ सरदार उधम सिंह की विरासत: जो आज भी ज़िंदा है
6.1 राष्ट्रीय सम्मान
पंजाब सरकार ने उन्हें "शहीद-ए-आजम" की उपाधि दी।
उत्तराखंड का एक जिला – उधम सिंह नगर – उनके नाम पर रखा गया।
उनके पैतृक गांव में उनकी प्रतिमा स्थापित की गई है।
6.2 फिल्मों और साहित्य में योगदान
कई किताबें और नाटकों में उनके जीवन पर रचनाएं हुईं।
2021 में विक्की कौशल अभिनीत फिल्म "Sardar Udham" ने उनकी कहानी को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहुंचाया। इस फिल्म ने उन्हें नई पीढ़ी के सामने एक हीरो के रूप में स्थापित किया।
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7️⃣ निष्कर्ष: एक कहानी जो केवल इतिहास नहीं, प्रेरणा है
सरदार उधम सिंह का जीवन सिर्फ एक प्रतिशोध की कहानी नहीं, बल्कि साहस, संकल्प और सच्चे देशप्रेम का प्रतीक है।
उन्होंने हमें यह सिखाया कि:
अत्याचार चाहे जितना भी बड़ा हो, उसका जवाब संघर्ष और बलिदान से दिया जा सकता है।
आज़ादी सिर्फ मांगने से नहीं, कुर्बानी से मिलती है।
और सबसे बड़ी बात — एक व्यक्ति भी इतिहास बदल सकता है, अगर उसमें इरादा हो।
आज जब हम आज़ादी की खुली हवा में सांस लेते हैं, तो हमें सरदार उधम सिंह जैसे नायकों को याद रखना चाहिए, जिनकी शहादत इस आज़ादी की नींव बनी।
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लेखक: Kaushal Asodiya