भारतीय संविधान के अनुच्छेद 10 और 11: नागरिकता के अधिकार, समाप्ति के नियम और सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले
हमारा संविधान, हमारी पहचान – 13
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 10 और 11 : नागरिकता के प्रावधानों की विस्तृत व्याख्या
परिचय
भारतीय संविधान केवल शासन प्रणाली का ढाँचा ही नहीं, बल्कि नागरिकों की पहचान और अधिकारों का मूल आधार भी है। नागरिकता से जुड़े प्रावधान हमें यह बताते हैं कि कौन भारत का नागरिक होगा, उसकी नागरिकता कैसे बनी रहेगी और किन परिस्थितियों में समाप्त हो सकती है। संविधान के अनुच्छेद 10 और 11 इसी विषय पर केंद्रित हैं।
इस लेख में हम इन दोनों अनुच्छेदों की गहराई से चर्चा करेंगे, सुप्रीम कोर्ट के संबंधित फैसलों का उल्लेख करेंगे, नागरिकता समाप्ति के विभिन्न तरीकों को समझेंगे और हालिया संवैधानिक संशोधन (विशेषकर नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019) पर भी प्रकाश डालेंगे।
अनुच्छेद 10: नागरिकता की निरंतरता
अनुच्छेद 10 कहता है कि—
"जो भी व्यक्ति संविधान के इस भाग के किसी प्रावधान के अनुसार भारत का नागरिक है, वह तब तक भारत का नागरिक बना रहेगा जब तक संसद द्वारा बनाए गए किसी विधि के अधीन उसकी नागरिकता समाप्त न कर दी जाए।"
इसका अर्थ यह है कि संविधान ने नागरिकता को स्थायित्व प्रदान किया है। कोई भी व्यक्ति, जो संविधान लागू होने के समय नागरिक था या नागरिकता संबंधी प्रावधानों के तहत नागरिक बना, वह स्वतः ही नागरिक बना रहेगा। उसकी नागरिकता तभी समाप्त होगी जब संसद इसके लिए विशेष कानून बनाए।
अनुच्छेद 11: संसद की विधायी शक्ति
अनुच्छेद 11 संसद को यह शक्ति देता है कि वह नागरिकता के अधिग्रहण, समाप्ति और उससे संबंधित अन्य मामलों में कानून बना सके।
यानी कि संविधान केवल बुनियादी ढाँचा तय करता है, जबकि नागरिकता से संबंधित विस्तृत नियम और प्रक्रियाएँ संसद द्वारा पारित कानूनों से निर्धारित होती हैं।
उदाहरण:
1955 में संसद ने भारतीय नागरिकता अधिनियम (Citizenship Act, 1955) पारित किया, जिसमें जन्म, वंश, पंजीकरण, प्राकृतिककरण और क्षेत्र के सम्मिलन के आधार पर नागरिकता प्राप्त करने के प्रावधान तय किए गए।
सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण फैसले
नागरिकता को लेकर कई बार विवाद खड़े हुए और सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसलों से इन अनुच्छेदों की व्याख्या की।
- State of U.P. बनाम शाह अब्दुल्ला अंसारी (1965): कोर्ट ने स्पष्ट किया कि नागरिकता केवल संविधान से नहीं, बल्कि संसद द्वारा बनाए गए कानूनों से भी नियंत्रित होती है।
- Berubari Union Case (1960): इस मामले में नागरिकता और क्षेत्रीय परिवर्तन के अधिकारों पर चर्चा हुई, और कोर्ट ने संसद की भूमिका को रेखांकित किया।
- नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) चुनौती: सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि नागरिकता का प्रश्न केवल विधायिका द्वारा बनाए गए कानूनों से तय होगा, लेकिन साथ ही यह भी जांच करेगा कि क्या ये कानून संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करते हैं।
भारतीय नागरिकता की समाप्ति के तरीके
भारतीय नागरिकता तीन प्रमुख तरीकों से समाप्त हो सकती है:
1. त्याग (Renunciation)
यदि कोई व्यक्ति स्वेच्छा से अपनी भारतीय नागरिकता छोड़ना चाहता है, तो वह सरकार को एक औपचारिक घोषणा पत्र देकर त्याग कर सकता है।
2. वंचन (Termination)
यदि कोई भारतीय नागरिक स्वेच्छा से किसी अन्य देश की नागरिकता ग्रहण करता है, तो उसकी भारतीय नागरिकता स्वतः समाप्त हो जाती है। भारत दोहरी नागरिकता की अनुमति नहीं देता।
3. निरसन (Deprivation)
भारत सरकार विशेष परिस्थितियों में किसी व्यक्ति की नागरिकता छीन सकती है, जैसे—
- यदि नागरिकता धोखाधड़ी से प्राप्त की गई हो,
- यदि व्यक्ति संविधान या भारत की संप्रभुता के खिलाफ कार्य कर रहा हो,
- या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन रहा हो।
नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 (CAA) और विवाद
2019 में संसद ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) पारित किया। इसके तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान किया गया, बशर्ते वे 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए हों।
मुख्य विवाद
- आलोचकों का कहना है कि यह कानून धर्म आधारित भेदभाव करता है और संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता के अधिकार) का उल्लंघन है।
- समर्थकों का तर्क है कि यह अधिनियम उन धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा करता है, जिन्हें पड़ोसी देशों में उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है।
सुप्रीम कोर्ट में स्थिति
CAA को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है और कोर्ट इस पर विचार कर रहा है कि क्या यह संविधान की मूल भावना और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के अनुरूप है।
नागरिकता और हाल के मुद्दे
- असम NRC (National Register of Citizens): असम में नागरिकता साबित करने की प्रक्रिया ने लाखों लोगों को प्रभावित किया। इससे यह सवाल उठा कि कौन भारत का वास्तविक नागरिक है।
- अन्य देशों से तुलना: अमेरिका और यूरोपीय देशों में dual citizenship की अनुमति है, लेकिन भारत अब भी इसे स्वीकार नहीं करता।
निष्कर्ष
अनुच्छेद 10 और 11 भारतीय नागरिकता के ढाँचे को स्थिरता और स्पष्टता प्रदान करते हैं। जहाँ अनुच्छेद 10 नागरिकता की निरंतरता सुनिश्चित करता है, वहीं अनुच्छेद 11 संसद को इसकी विस्तृत रूपरेखा तय करने का अधिकार देता है।
नागरिकता न केवल कानूनी पहचान है, बल्कि यह हमारे अधिकारों, कर्तव्यों और संविधान से जुड़ाव का प्रतीक भी है। हालिया विवादों और संशोधनों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि नागरिकता का प्रश्न केवल कानून का विषय नहीं है, बल्कि यह हमारे लोकतंत्र और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों से गहराई से जुड़ा है।
आज जब हम संविधान के इन अनुच्छेदों को समझते हैं, तो यह हमारी जिम्मेदारी है कि नागरिकता को केवल अधिकार न मानें, बल्कि इसे जिम्मेदारी और कर्तव्य के साथ निभाएँ।
Kaushal Asodiya