अनुच्छेद 15 और 17: क्या भारतीय संविधान जातिवाद और छुआछूत को खत्म कर सका? | Article 15 & 17: Kya Bhartiya Samvidhan Jaativaad Aur ChhuaChhoot Ko Khatm Kar Saka?
अनुच्छेद 15 और 17: क्या भारतीय संविधान जातिवाद और छुआछूत को खत्म कर सका? | Article 15 & 17: Kya Bhartiya Samvidhan Jaativaad Aur ChhuaChhoot Ko Khatm Kar Saka?
भूमिका
भारत एक लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश है, लेकिन जातिवाद और छुआछूत जैसी अमानवीय प्रथाएँ आज भी समाज में गहराई तक जमी हुई हैं। संविधान निर्माताओं ने इन सामाजिक बुराइयों को खत्म करने के लिए कई सशक्त प्रावधान किए। इनमें अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 17 विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं।
- अनुच्छेद 15 नागरिकों के साथ धर्म, जाति, लिंग, नस्ल या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है।
- अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता को पूरी तरह गैरकानूनी घोषित करता है और इसे दंडनीय अपराध बनाता है।
प्रश्न यह है कि क्या इन दोनों प्रावधानों ने वास्तव में जातिवाद और छुआछूत को समाप्त कर दिया है? आइए विस्तार से समझें।
अनुच्छेद 15: भेदभाव पर रोक
संविधान में अनुच्छेद 15 का प्रावधान
- राज्य किसी भी नागरिक के साथ धर्म, जाति, नस्ल, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा।
- नागरिकों को दुकानों, होटलों, रेस्तरां और सार्वजनिक स्थलों पर प्रवेश से नहीं रोका जा सकता।
- शिक्षा और सामाजिक प्रगति के लिए राज्य अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्गों के लिए विशेष प्रावधान कर सकता है।
अनुच्छेद 15 का महत्व
भारत में सदियों से जातिगत भेदभाव सामाजिक ढाँचे का हिस्सा रहा है। यह अनुच्छेद समानता के सिद्धांत को मजबूत करता है और अनुसूचित जातियों तथा पिछड़े वर्गों को आरक्षण की सुविधा प्रदान करता है।
अनुच्छेद 15 की प्रभावशीलता
- शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण ने पिछड़े वर्गों को मुख्यधारा में लाने में मदद की।
- लेकिन विवाह, सामाजिक संबंधों और ग्रामीण क्षेत्रों में जातिगत भेदभाव अभी भी गहराई से मौजूद है।
- निजी क्षेत्र में आरक्षण न होने के कारण भेदभाव पूरी तरह समाप्त नहीं हो सका।
इसलिए अनुच्छेद 15 ने कानूनी आधार पर भेदभाव को रोका, लेकिन सामाजिक स्तर पर इसकी पूरी सफलता अभी बाकी है।
अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता का उन्मूलन
संविधान में अनुच्छेद 17 का प्रावधान
- अस्पृश्यता समाप्त कर दी गई है।
- इसका पालन करने या बढ़ावा देने वाले को दंडित किया जाएगा।
- किसी भी प्रकार की अस्पृश्यता को गैरकानूनी घोषित किया गया।
अनुच्छेद 17 का महत्व
भारत में दलितों को सदियों तक शोषण और सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा। अनुच्छेद 17 ने पहली बार कानूनन उन्हें बराबरी का दर्जा दिया।
इस अनुच्छेद को लागू करने के लिए कई कानून बनाए गए:
- 1955: अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम
- 1976: इसका नाम बदलकर सिविल राइट्स प्रोटेक्शन एक्ट किया गया।
- 1989: अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम लागू किया गया।
अनुच्छेद 17 की प्रभावशीलता
- कानूनन अस्पृश्यता समाप्त हो गई है, लेकिन व्यवहार में यह आज भी दिखाई देती है।
- ग्रामीण भारत में दलितों को मंदिरों, जल स्रोतों और श्मशानों में भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
- हर साल हजारों दलितों के खिलाफ हिंसा और अत्याचार के मामले दर्ज होते हैं।
- न्याय व्यवस्था में ऊँची जातियों के वर्चस्व के कारण कई बार पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पाता।
अनुच्छेद 15 और 17 को और प्रभावी कैसे बनाया जाए?
- कानूनों का सख्ती से पालन – अत्याचार निवारण अधिनियम को और मजबूती से लागू किया जाए।
- सामाजिक जागरूकता – बड़े पैमाने पर अभियान चलाकर जातिवाद और अस्पृश्यता को खत्म करने की दिशा में लोगों की सोच बदली जाए।
- शिक्षा का सुधार – स्कूलों और विश्वविद्यालयों में समावेशी शिक्षा प्रणाली लागू हो।
- आर्थिक सशक्तिकरण – दलितों और पिछड़े वर्गों को स्वरोजगार और विशेष आर्थिक योजनाओं से सक्षम बनाया जाए।
- निजी क्षेत्र में आरक्षण – सरकारी नौकरियों की तरह निजी क्षेत्र में भी आरक्षण लागू किया जाए।
निष्कर्ष
अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 17 भारतीय संविधान की आत्मा हैं। इनका उद्देश्य है भेदभाव और अस्पृश्यता जैसी कुप्रथाओं को समाप्त करना और समाज में समानता लाना।
कानूनों ने निश्चित रूप से स्थिति बदली है, लेकिन जातिवाद और छुआछूत पूरी तरह खत्म नहीं हुए हैं। यह केवल कानूनी नहीं बल्कि सामाजिक और मानसिक क्रांति का विषय है।
जब तक समाज अपने भीतर समानता और भाईचारे की भावना नहीं विकसित करेगा, तब तक ये अनुच्छेद अपने असली उद्देश्य को पूरी तरह हासिल नहीं कर पाएँगे।
Kaushal Asodiya