Chhava Movie vs Real History: औरंगजेब बनाम संभाजी राजे – धर्म, राजनीति या अर्थव्यवस्था?
Chhava Movie vs Real History: औरंगजेब बनाम संभाजी राजे – धर्म, राजनीति या अर्थव्यवस्था?
संभाजी राजे और औरंगजेब के बीच संघर्ष भारतीय इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण युद्धों में से एक है। अक्सर इसे हिंदू बनाम मुस्लिम युद्ध के रूप में देखा जाता है, लेकिन क्या यह पूरी सच्चाई है? क्या यह केवल धर्म के नाम पर लड़ा गया था, या इसके पीछे राजनीतिक और आर्थिक कारण भी थे?
"Chhava" फिल्म के आने के बाद, यह बहस और तेज हो गई है कि संभाजी राजे और औरंगजेब का संघर्ष किस हद तक धार्मिक था। इस लेख में, हम ऐतिहासिक तथ्यों और घटनाओं का विश्लेषण करेंगे और समझेंगे कि यह केवल धर्म का युद्ध नहीं था, बल्कि इसमें सत्ता, रणनीति और स्वराज्य की रक्षा की भी बड़ी भूमिका थी।
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1. औरंगजेब: धर्म के नाम पर सत्ता का खेल
औरंगजेब (1618-1707) को मुगल इतिहास का सबसे कट्टर शासक माना जाता है। अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ ने एक धर्मनिरपेक्ष नीति अपनाने की कोशिश की थी, लेकिन औरंगजेब ने इस्लामी कट्टरता को अपने शासन का आधार बनाया।
उसकी नीतियों में शामिल था:
✅ जज़िया कर की पुनः शुरुआत, जिससे गैर-मुस्लिमों पर कर लगाया गया।
✅ हजारों मंदिरों का विध्वंस, जिनमें काशी विश्वनाथ, केशवदेव और सोमनाथ शामिल थे।
✅ हिंदू प्रशासनिक अधिकारियों की संख्या में भारी कमी।
✅ शिया और सूफी परंपराओं पर प्रतिबंध।
✅ दक्षिण भारत को जीतने के लिए 25 वर्षों तक मराठों से युद्ध।
धार्मिक कारणों के अलावा, औरंगजेब की असली मंशा पूरे भारत पर मुगल नियंत्रण स्थापित करना था।
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2. क्या यह केवल धार्मिक युद्ध था?
संभाजी राजे (1657-1689) छत्रपति शिवाजी महाराज के उत्तराधिकारी और मराठा साम्राज्य के दूसरे छत्रपति थे। उन्होंने अपने शासनकाल में मुगलों, पुर्तगालियों और अंग्रेजों से लोहा लिया।
इस युद्ध को सिर्फ "हिंदू बनाम मुस्लिम" कहना गलत होगा, क्योंकि इसके पीछे कई कारण थे:
(i) राजनीतिक कारण:
औरंगजेब चाहता था कि मराठा साम्राज्य मुगलों के अधीन हो, लेकिन संभाजी राजे ने इसे कभी स्वीकार नहीं किया।
शिवाजी महाराज की मृत्यु (1680) के बाद, औरंगजेब को लगा कि मराठा शक्ति कमजोर हो जाएगी, लेकिन संभाजी राजे ने इसे और मजबूत कर दिया।
संभाजी राजे ने बीजापुर और गोलकुंडा जैसे मुस्लिम राज्यों से भी गठबंधन किया, जिससे यह साबित होता है कि उनका संघर्ष केवल धार्मिक नहीं था।
(ii) आर्थिक कारण:
मराठा साम्राज्य मुगलों के व्यापार और कर वसूली के लिए एक बड़ा खतरा बन गया था।
संभाजी राजे की छापामार युद्ध नीति ने मुगलों के व्यापार मार्गों को बुरी तरह प्रभावित किया।
दक्षिण भारत व्यापार और कृषि का केंद्र था, और औरंगजेब इसे अपने नियंत्रण में लेना चाहता था।
(iii) धार्मिक कारण:
औरंगजेब ने युद्ध को धार्मिक रंग दिया और संभाजी राजे को एक 'काफिर' घोषित किया।
लेकिन इस संघर्ष को केवल धर्म तक सीमित नहीं किया जा सकता, क्योंकि मराठा सेना में कई मुस्लिम योद्धा थे और मुगल सेना में हिंदू सेनापति भी थे।
संभाजी राजे ने धर्म के आधार पर कभी भेदभाव नहीं किया। उनकी सेना में हिंदू और मुस्लिम दोनों उच्च पदों पर थे।
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3. औरंगजेब की क्रूरता और संभाजी राजे का बलिदान
संभाजी राजे ने अपने शासनकाल में औरंगजेब को कई बार युद्ध में हराया, लेकिन 1689 में गद्दारों ने उन्हें धोखे से पकड़वा दिया। औरंगजेब ने उन्हें इस्लाम कबूल करने का प्रस्ताव दिया, लेकिन उन्होंने गर्व से इसे ठुकरा दिया।
इसके बाद:
संभाजी राजे को भयानक यातनाएँ दी गईं।
उनकी आँखें निकाली गईं और जीभ काट दी गई।
अंततः, उनका सिर काटकर शरीर के टुकड़े कर दिए गए।
संभाजी राजे की वीरता और बलिदान भारतीय इतिहास में स्वतंत्रता और आत्म-सम्मान का प्रतीक बन गया।
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4. निष्कर्ष: यह केवल धर्म की लड़ाई नहीं थी
✅ यह संघर्ष धर्म, राजनीति और अर्थव्यवस्था का मिश्रण था।
✅ औरंगजेब ने धर्म का उपयोग सत्ता मजबूत करने के लिए किया, लेकिन उसका असली मकसद भारत पर पूर्ण नियंत्रण पाना था।
✅ संभाजी राजे धर्म से ज्यादा स्वराज्य और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए लड़े।
✅ मराठा और मुगलों दोनों की सेनाओं में हिंदू और मुस्लिम योद्धा थे, इसलिए इसे सिर्फ "हिंदू बनाम मुस्लिम" कहना ऐतिहासिक रूप से गलत होगा।
✅ संभाजी राजे का बलिदान दिखाता है कि स्वतंत्रता की लड़ाई किसी भी धर्म से बड़ी होती है।
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5. "Chhava" फिल्म और इतिहास की सच्चाई
2025 में रिलीज़ हुई "Chhava" फिल्म ने संभाजी राजे और औरंगजेब के संघर्ष को फिर से चर्चा में ला दिया है। हालाँकि, फिल्मों में अक्सर रचनात्मक स्वतंत्रता (Creative Liberty) ली जाती है, इसलिए यह जरूरी है कि हम ऐतिहासिक तथ्यों पर भी ध्यान दें।
अगर आप सच में संभाजी राजे की वीरता को जानना चाहते हैं, तो इतिहास के वास्तविक स्रोतों को पढ़ना जरूरी है, न कि केवल फिल्मों पर निर्भर रहना।
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अंतिम विचार
औरंगजेब एक कट्टर धार्मिक शासक था, लेकिन उसका संघर्ष केवल धर्म के लिए नहीं था।
संभाजी राजे एक महान योद्धा और रणनीतिकार थे, जिन्होंने धर्म से ऊपर उठकर स्वराज्य की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया।
इसलिए, इस ऐतिहासिक संघर्ष को केवल "हिंदू बनाम मुस्लिम" की लड़ाई कहना इतिहास के साथ अन्याय होगा। यह एक स्वतंत्रता संग्राम था, जिसमें धर्म का उपयोग सत्ता की राजनीति के लिए किया गया।
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क्या आप सहमत हैं कि यह युद्ध सिर्फ धर्म के लिए नहीं था? अपने विचार कमेंट में साझा करें!
-kaushal Asodiya