Article 33, 34, 35 Explained in Hindi – सशस्त्र बलों के अधिकार और संविधान की सीमाएं पूरी जानकारी के साथ
हमारा संविधान, हमारी पहचान – भाग 35:
अनुच्छेद 33 से 35 की व्याख्या – संविधान के विशेष और संरक्षित प्रावधान
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 33 से 35 तक कुछ ऐसे विशेष प्रावधानों को सम्मिलित किया गया है जो न केवल मौलिक अधिकारों की व्याख्या करते हैं, बल्कि इन अधिकारों की सीमाओं को भी स्पष्ट करते हैं, विशेषकर कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में जैसे कि सशस्त्र बलों, अर्धसैनिक बलों या सार्वजनिक सेवाओं के संदर्भ में। इसके साथ ही ये अनुच्छेद यह भी तय करते हैं कि संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों को कैसे लागू किया जाएगा।
अनुच्छेद 33: सशस्त्र बलों पर मौलिक अधिकारों की सीमा
अनुच्छेद 33 के अंतर्गत संसद को यह शक्ति दी गई है कि वह कानून बनाकर सशस्त्र बलों, अर्धसैनिक बलों, पुलिस बल, खुफिया एजेंसियों और ऐसे अन्य बलों के सदस्यों के मौलिक अधिकारों को सीमित या निरस्त कर सकती है। इसका उद्देश्य है इन बलों में अनुशासन और कर्तव्यपालन की भावना बनाए रखना।
महत्वपूर्ण बिंदु:
संसद के पास यह विशेषाधिकार है, न कि राज्य सरकारों के पास।
यह अनुच्छेद विशेष रूप से सशस्त्र बलों के अंदर अनुशासन बनाए रखने के लिए मौलिक अधिकारों में कटौती की अनुमति देता है।
उदाहरण: एक सैनिक को सरकार या सेना के खिलाफ सार्वजनिक रूप से बोलने का अधिकार नहीं हो सकता।
अनुच्छेद 34: आपातकालीन स्थिति में मूल अधिकारों पर प्रतिबंध
अनुच्छेद 34 यह व्यवस्था करता है कि जब देश में मार्शल लॉ (Martial Law) जैसी कोई स्थिति हो और नागरिकों के मौलिक अधिकार निलंबित किए जाएं, तो संसद यह निर्णय ले सकती है कि किस हद तक कानूनी कार्रवाई की जा सकती है और किन लोगों को संरक्षण दिया जाएगा।
मुख्य बिंदु:
यह अनुच्छेद विशेष रूप से युद्धकाल, विद्रोह या देश के भीतर अस्थिरता की स्थिति में लागू होता है।
इसके अंतर्गत, सरकार कानून बनाकर यह तय कर सकती है कि किसी सैन्य कार्यवाही या आदेश के विरुद्ध कौन-सी कानूनी कार्रवाई मान्य होगी।
यह नागरिक स्वतंत्रता और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन स्थापित करता है।
अनुच्छेद 35: मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए संसद की शक्ति
अनुच्छेद 35 यह सुनिश्चित करता है कि संविधान में दिए गए कुछ विशेष अधिकारों और प्रतिबंधों को लागू करने के लिए केवल संसद ही कानून बना सकती है। यह अनुच्छेद यह स्पष्ट करता है कि राज्य सरकारें इन क्षेत्रों में कानून नहीं बना सकतीं।
उदाहरण:
अनुच्छेद 16(3) के अंतर्गत सार्वजनिक रोजगार में अधिवास आधारित आरक्षण – इस पर केवल संसद कानून बना सकती है।
अनुच्छेद 17 के तहत अस्पृश्यता के उन्मूलन और अनुच्छेद 23 में जबरन श्रम पर रोक लगाने के लिए बनाए गए कानून (जैसे: SC/ST Atrocities Act, Bonded Labour Abolition Act) संसद के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
संविधान में इन अनुच्छेदों की आवश्यकता क्यों थी?
भारत जैसे विविध और विशाल लोकतंत्र में जहाँ सशस्त्र बल, कानून व्यवस्था और सामाजिक न्याय एक साथ चलते हैं, वहां संविधान निर्माताओं ने यह सुनिश्चित किया कि कहीं मौलिक अधिकारों का अंधाधुंध उपयोग इन संवेदनशील व्यवस्थाओं में बाधा न बन जाए। अनुच्छेद 33 से 35 संविधान के इस परिपक्व सोच को दर्शाते हैं।
उदाहरण:
कोई सैनिक यदि “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” का हवाला देकर सैन्य गोपनीयता उजागर करे तो यह राष्ट्र की सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है। इसलिए अनुच्छेद 33 के तहत सीमाएं निर्धारित की गईं।
आलोचना और चिंताएं
हालांकि ये अनुच्छेद तर्कसंगत और आवश्यक हैं, फिर भी कुछ विशेषज्ञ यह चिंता व्यक्त करते हैं कि सरकारें इन अनुच्छेदों का उपयोग कर नागरिकों के अधिकारों का दमन भी कर सकती हैं, विशेषकर आपातकाल की स्थितियों में। भारत के इतिहास में 1975 का आपातकाल इस बात का उदाहरण है कि कैसे अनुच्छेद 34 का दुरुपयोग किया गया।
निष्कर्ष
अनुच्छेद 33 से 35 यह स्पष्ट करते हैं कि संविधान ने मौलिक अधिकारों को पूर्ण स्वतंत्रता के रूप में नहीं बल्कि जिम्मेदारी और परिस्थिति के अनुसार विनियमित किया है। इन प्रावधानों ने भारतीय लोकतंत्र को और अधिक व्यावहारिक और संतुलित बनाया है।
इन अनुच्छेदों से यह सीख मिलती है कि अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों और सीमाओं का भी पालन आवश्यक है, तभी एक सशक्त और न्यायसंगत राष्ट्र की परिकल्पना साकार हो सकती है।
लेखक: Kaushal Asodiya