Bharat ke Samvidhan ka Part 4 – Directive Principles of State Policy (DPSP) aur Kartavya in Hindi
हमारा संविधान, हमारी पहचान - 36
भाग 4
संविधान के अनुच्छेद 36 से 51 तक की व्याख्या
भारतीय संविधान का भाग 4 ‘राज्य के नीति निदेशक तत्वों’ (Directive Principles of State Policy – DPSP) को समर्पित है, जो भारतीय लोकतंत्र के सामाजिक और आर्थिक लक्ष्यों की दिशा तय करते हैं। अनुच्छेद 36 से 51 तक फैला यह भाग संविधान निर्माताओं की उस दूरदृष्टि को दर्शाता है जो भारत को एक न्यायसंगत, समानता पर आधारित और कल्याणकारी राज्य बनाने की कल्पना करती है।
राज्य के नीति निदेशक तत्व क्या हैं? ये तत्व संविधान के भाग 4 में दिए गए ऐसे सिद्धांत हैं जिनका उद्देश्य सरकार को एक सामाजिक-आर्थिक रूप से न्यायपूर्ण राज्य की स्थापना की दिशा में मार्गदर्शन देना है। हालाँकि ये अनुच्छेद मौलिक अधिकारों की तरह न्यायिक रूप से लागू नहीं किए जा सकते, फिर भी ये नीति निर्माण में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
अनुच्छेद 36 से 51: संक्षिप्त व्याख्या
- अनुच्छेद 36: इसमें ‘राज्य’ की परिभाषा दी गई है, जो मौलिक अधिकारों में वर्णित ‘राज्य’ की परिभाषा के समान है।
- अनुच्छेद 37: इसमें बताया गया है कि राज्य के नीति निदेशक तत्व न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं हैं लेकिन शासन में इनका अनुपालन आवश्यक है।
- अनुच्छेद 38: सामाजिक व्यवस्था को बढ़ावा देने और सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक न्याय को सुनिश्चित करने की बात करता है।
- अनुच्छेद 39: पुरुषों और महिलाओं के लिए समान अधिकार, आजीविका के साधनों का समान वितरण, और बाल श्रम के निषेध जैसे बिंदुओं को स्पष्ट करता है।
- अनुच्छेद 39A: सभी नागरिकों को न्याय तक समान पहुँच दिलाने के लिए निःशुल्क कानूनी सहायता का प्रावधान करता है।
- अनुच्छेद 40: पंचायतों की स्थापना के लिए राज्य को निर्देशित करता है।
- अनुच्छेद 41 से 43B: रोजगार, शिक्षा, सार्वजनिक सहायता, काम की परिस्थितियाँ, श्रमिकों के हित आदि की रक्षा हेतु दिशानिर्देश देता है।
- अनुच्छेद 44: समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में राज्य को प्रयास करने के लिए कहता है।
- अनुच्छेद 45 से 47: बच्चों की शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य से संबंधित प्रावधान शामिल हैं।
- अनुच्छेद 48: पशुओं की नस्ल सुधार और गोहत्या पर प्रतिबंध का सुझाव देता है।
- अनुच्छेद 48A: पर्यावरण की रक्षा और सुधार को बढ़ावा देने की बात करता है।
- अनुच्छेद 49 से 51: राष्ट्रीय धरोहर की रक्षा, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और अंतरराष्ट्रीय शांति को बढ़ावा देने जैसे व्यापक विषयों को संबोधित करता है।
महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ:
- गैर-न्यायिक प्रकृति: इन अनुच्छेदों को न्यायालय में लागू नहीं किया जा सकता, लेकिन सरकार की नैतिक जिम्मेदारी होती है कि इनका पालन करे।
- कल्याणकारी राज्य की दिशा: ये अनुच्छेद भारत को एक समाजवादी राज्य बनाने की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं।
- नीति निर्माण का आधार: सरकार द्वारा बनाए जाने वाले कानूनों, योजनाओं और नीतियों का आधार इन्हीं अनुच्छेदों पर होता है।
समाप्ति में: राज्य के नीति निदेशक तत्व भारत को एक ऐसा राष्ट्र बनाने की कल्पना करते हैं जहाँ समानता, सामाजिक न्याय, और जीवन की गरिमा हर नागरिक को प्राप्त हो। ये संविधान का आत्मा हैं, जो शासन को एक नैतिक दिशा प्रदान करते हैं।
आगामी ब्लॉग पोस्टों में हम भाग 4 के प्रत्येक अनुच्छेद की विस्तृत व्याख्या, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, और वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उनके महत्त्व को विस्तार से साझा करेंगे।
लेखक: Kaushal Asodiya