Krishna Ki Pehli Paheli: Ambedkar Ke Sawalon Ki Sachchai

 




कृष्ण की पहेली: डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर की दृष्टि में ‘रिडल ऑफ कृष्ण’


प्रस्तावना

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “हिंदू धर्म की पहेलियाँ” (Riddles in Hinduism) में ऐसे सवाल उठाए हैं, जो भारतीय समाज की धार्मिक धारणाओं को गहराई से चुनौती देते हैं। इसी पुस्तक के “रिडल ऑफ कृष्ण” खंड में उन्होंने भगवान कृष्ण के जीवन, चरित्र और उनके आचरण पर गंभीर प्रश्न उठाए हैं। यह प्रश्न न केवल धार्मिक आस्था से जुड़े हैं, बल्कि नैतिकता और सामाजिक आदर्शों से भी संबंध रखते हैं।


अंबेडकर का दृष्टिकोण स्पष्ट है—वे कृष्ण के जीवन से जुड़ी घटनाओं को महिमामंडित करने की बजाय आलोचनात्मक दृष्टि से परखते हैं। इस लेख में हम उन्हीं विचारों को विस्तार से समझेंगे।



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1. कृष्ण की कहानी और महाभारत का संबंध


अंबेडकर का पहला और सबसे महत्वपूर्ण तर्क यह है कि महाभारत मूल रूप से पांडवों की गाथा थी। प्रारंभिक रूप से इसमें कृष्ण की भूमिका बहुत सीमित या लगभग नगण्य थी। बाद में जब कृष्ण की पूजा और महत्व बढ़ाने की आवश्यकता महसूस हुई, तब उनकी कथाओं को जोड़कर महाभारत का विस्तार किया गया।


अंबेडकर लिखते हैं कि यदि महाभारत को मूल रूप में देखा जाए तो यह केवल दो परिवारों—पांडव और कौरव—के बीच युद्ध की कथा थी। लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, कृष्ण को देवत्व प्रदान करने के लिए कई कथाएँ, प्रसंग और संवाद उसमें जोड़े गए। यह संकेत करता है कि कृष्ण का “ईश्वर रूप” एक उत्तरकालीन निर्माण है।



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2. वस्त्रहरण की घटना पर प्रश्न


कृष्ण से जुड़ी सबसे विवादास्पद घटनाओं में से एक है वस्त्रहरण। अंबेडकर इसे अश्लील और अपमानजनक घटना मानते हैं।


कथा यह है कि जब गोपिकाएँ यमुना में स्नान कर रही थीं, तब कृष्ण उनके कपड़े लेकर पेड़ पर चढ़ जाते हैं। गोपिकाओं को नग्न अवस्था में आकर उनसे वस्त्र वापस माँगने पड़ते हैं। इस घटना को पारंपरिक धर्मशास्त्र में भक्ति और आध्यात्मिक प्रेम का प्रतीक बताया जाता है।


लेकिन अंबेडकर इस व्याख्या को सिरे से नकारते हैं। उनका सवाल स्पष्ट है—क्या किसी महिला का वस्त्र छीनना और उसे विवश करना कभी भी नैतिक या आध्यात्मिक हो सकता है? यदि कृष्ण भगवान थे, तो क्या उनसे ऐसा कृत्य अपेक्षित था? अंबेडकर इसे एक गंभीर नैतिक पहेली मानते हैं।



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3. रासलीला और राधा का प्रसंग


अंबेडकर ने रासलीला का भी उल्लेख किया है। पारंपरिक मान्यता के अनुसार रासलीला भक्ति और प्रेम की उच्चतम अवस्था का प्रतीक है। लेकिन अंबेडकर का मत है कि यह “अनैतिक निकटता” का उदाहरण है।


कृष्ण का राधा के साथ संबंध अंबेडकर की दृष्टि में सबसे बड़ा प्रश्न है। राधा किसी और की पत्नी थी, और कृष्ण स्वयं विवाहित थे। इसके बावजूद दोनों के बीच के संबंधों को प्रेम की उच्चतम अभिव्यक्ति बताया गया। अंबेडकर इसे नैतिकता के विरुद्ध मानते हैं।


वे पूछते हैं—क्या एक विवाहित पुरुष का किसी अन्य स्त्री के साथ ऐसा संबंध उचित है? और क्या ऐसे आचरण को धर्म के नाम पर आदर्श माना जा सकता है?


यह सवाल न केवल कृष्ण के चरित्र पर बल्कि उस संस्कृति पर भी है, जिसने ऐसे आचरण को महिमामंडित किया।



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4. युद्ध में अधर्म और रणनीति


महाभारत के युद्ध में कृष्ण की भूमिका को भी अंबेडकर ने सवालों के घेरे में रखा है। वे लिखते हैं कि कृष्ण ने पांडवों की जीत के लिए कई अधर्मपूर्ण उपाय अपनाए।


उदाहरण के लिए:


भीम को दुर्योधन की जांघ पर प्रहार करने की सलाह—जबकि यह नियमों के विरुद्ध था।


अर्जुन को सुभद्रा का हरण करने के लिए उकसाना—बिना स्वयंवर, छलपूर्वक विवाह।



अंबेडकर कहते हैं कि यदि कृष्ण वास्तव में धर्म के रक्षक थे, तो उन्होंने ऐसे अनैतिक उपाय क्यों अपनाए? क्या विजय के लिए नियमों का उल्लंघन धर्म कहलाता है?



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5. द्वारका में जीवन: मद्य और अनाचार


अंबेडकर ने कृष्ण के द्वारका जीवन की भी चर्चा की है। वे लिखते हैं कि कृष्ण ने राजकाज के साथ-साथ एक ऐसा जीवन जिया, जिसमें मद्यपान, नृत्य, गान और अत्यधिक स्त्री-संपर्क था।


महाभारत और पुराणों के वर्णनों के आधार पर अंबेडकर कहते हैं कि कृष्ण के वंशजों में भी आपसी कलह, मद्यपान और हिंसा आम थी। अंततः इन्हीं कारणों से यादवों का संहार हुआ। यह सब उस समय हुआ जब कृष्ण जीवित थे।


अंबेडकर का प्रश्न है—क्या यह एक आदर्श शासक या ईश्वर का आचरण हो सकता है?



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6. अंतिम पहेली: क्या कृष्ण वास्तव में ईश्वर हैं?


अंबेडकर इन घटनाओं के आधार पर अंतिम प्रश्न उठाते हैं—


क्या ऐसे व्यक्ति को भगवान माना जाना चाहिए, जो नैतिकता और आचरण की दृष्टि से संदिग्ध कार्य करता हो?


क्या धर्म को इस तरह के उदाहरणों पर आधारित किया जा सकता है?


क्या भक्तिभाव में हम आलोचनात्मक दृष्टि खो चुके हैं?



अंबेडकर का उद्देश्य किसी की भावना को ठेस पहुँचाना नहीं था, बल्कि यह दिखाना था कि धर्म में अंधविश्वास की बजाय विवेक और नैतिकता का स्थान होना चाहिए।



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निष्कर्ष


अंबेडकर की यह समीक्षा हमें सोचने के लिए मजबूर करती है कि धार्मिक कथाओं को आँख मूँदकर स्वीकार करने के बजाय हमें उन्हें तर्क और नैतिकता की कसौटी पर परखना चाहिए। यही उनके प्रश्नों की मूल भावना है।



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लेखक: Kaushal Asodiya

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