भारतीय संविधान: अनुच्छेद 5 और 6 - नागरिकता के प्रावधान, सुप्रीम कोर्ट के फैसले और ऐतिहासिक घटनाएँ


हमारा संविधान, हमारी पहचान – भाग 13

भारतीय नागरिकता: अनुच्छेद 5 और 6 की गहराई से समझ

लेखक: Kaushal Asodiya

भारत का संविधान न केवल एक कानूनी दस्तावेज है, बल्कि यह हमारे राष्ट्रीय चरित्र और मूल्यों का प्रतिबिंब भी है। संविधान का भाग 2 (अनुच्छेद 5 से 11) भारतीय नागरिकता को परिभाषित करता है। आज हम इसमें से विशेष रूप से अनुच्छेद 5 और 6 पर चर्चा करेंगे, जो यह निर्धारित करते हैं कि भारत की स्वतंत्रता के समय कौन भारतीय नागरिक था और विभाजन के बाद भारत आए लोगों की नागरिकता की स्थिति क्या रही।


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नागरिकता का संवैधानिक ढांचा

भारतीय संविधान के भाग 2 में नागरिकता से संबंधित नियमों को स्पष्ट किया गया है। इसमें यह बताया गया है कि 26 जनवरी 1950 को संविधान के लागू होने के समय कौन भारतीय नागरिक माना जाएगा, साथ ही विभाजन के कारण पाकिस्तान से भारत आने वाले शरणार्थियों की स्थिति को भी इसमें शामिल किया गया है।


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अनुच्छेद 5: संविधान लागू होते समय भारत के नागरिक

अनुच्छेद 5 के अनुसार, वह हर व्यक्ति भारतीय नागरिक होगा जो 26 जनवरी 1950 को भारत के राज्यक्षेत्र में मौजूद था और निम्नलिखित में से कोई एक शर्त पूरी करता था:

वह भारत में जन्मा था;

उसके माता-पिता भारत में जन्मे थे;

वह पिछले पाँच वर्षों से भारत में सामान्य रूप से निवास कर रहा था।


इस अनुच्छेद की सबसे अहम बात यह है कि इसमें नागरिकता के लिए धर्म, जाति, भाषा या नस्ल के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया गया। यह संविधान की धर्मनिरपेक्ष और समावेशी भावना को दर्शाता है। जो लोग स्वतंत्रता के पहले भारत में बसे हुए थे, उन्हें बिना किसी विशेष प्रक्रिया के स्वतः भारतीय नागरिक मान लिया गया।


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अनुच्छेद 6: पाकिस्तान से आए शरणार्थियों की नागरिकता

विभाजन के बाद लाखों लोग पाकिस्तान से भारत आए, जिनमें अधिकांश हिंदू, सिख, जैन और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक थे। इनकी नागरिकता का प्रश्न गंभीर था, और अनुच्छेद 6 इसका संवैधानिक समाधान प्रस्तुत करता है।

इस अनुच्छेद के अनुसार:

यदि कोई व्यक्ति 19 जुलाई 1948 से पहले भारत आया था, और वह सामान्य नागरिकता की शर्तें पूरी करता था, तो वह भारतीय नागरिक बन सकता था।

यदि कोई व्यक्ति 19 जुलाई 1948 के बाद भारत आया, तो उसे नागरिकता प्राप्त करने के लिए:

भारत सरकार के समक्ष रजिस्ट्रेशन कराना आवश्यक था,

और भारत में कम से कम छह महीने तक रहना भी अनिवार्य था।



यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि केवल वही लोग नागरिकता प्राप्त करें जो वास्तव में भारत में स्थायी रूप से बसने के इच्छुक हों।


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सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख निर्णय

भारतीय नागरिकता से संबंधित कई मामलों में सर्वोच्च न्यायालय ने दिशा-निर्देश प्रदान किए हैं, जो अनुच्छेद 5 और 6 की व्याख्या को और स्पष्ट करते हैं।

1. हंस मुल्ला बनाम भारत संघ (1961):
इस निर्णय में अदालत ने माना कि जो व्यक्ति भारत में जन्मा है और उसके माता-पिता भी भारतीय हैं, उसे नागरिकता का पूरा अधिकार प्राप्त है।

2. पाकिस्तान से नागरिकता विवाद (1967):
इस केस में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर कोई व्यक्ति पाकिस्तान की नागरिकता स्वीकार कर चुका है, तो वह भारतीय नागरिक नहीं रह सकता।

3. सरफराज हुसैन बनाम भारत संघ (2002):
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति विभाजन के दौरान पाकिस्तान चला गया था, लेकिन बाद में भारत लौटकर यहां बस गया, तो उसे भारतीय नागरिकता के लिए सरकार की स्वीकृति लेनी होगी। यह दिखाता है कि नागरिकता केवल जन्म या निवास से ही नहीं, बल्कि कानूनी प्रक्रिया और इरादे पर भी आधारित है।


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नागरिकता का महत्व

नागरिकता किसी व्यक्ति की राष्ट्रीय पहचान का आधार होती है। यह अधिकार और कर्तव्यों का द्वार खोलती है – जैसे मतदान का अधिकार, सरकारी सेवाओं में भागीदारी, और संवैधानिक सुरक्षा। भारतीय संविधान ने नागरिकता के संबंध में जो दृष्टिकोण अपनाया है, वह बेहद संतुलित और मानवीय है।

अनुच्छेद 5 और 6 भारतीय संविधान की समावेशी सोच को दर्शाते हैं। यह सुनिश्चित करते हैं कि उन सभी लोगों को, जो भारत की स्वतंत्रता के समय या विभाजन के उपरांत भारत में स्थायी रूप से बसने आए थे, उचित प्रक्रिया द्वारा नागरिकता प्राप्त हो सके।


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निष्कर्ष

भारतीय संविधान का भाग 2 और विशेषकर अनुच्छेद 5 व 6, न केवल नागरिकता को कानूनी रूप से परिभाषित करते हैं, बल्कि स्वतंत्रता के समय भारत की सामाजिक और ऐतिहासिक परिस्थितियों को भी सम्मानपूर्वक स्थान देते हैं।

इन प्रावधानों में यह स्पष्ट है कि भारतीय नागरिकता किसी धर्म या जाति पर आधारित नहीं, बल्कि निवास, जन्म और इरादे की भावना पर आधारित है। यह भारतीय संविधान की मूल भावना – समावेशिता, धर्मनिरपेक्षता और समानता – को मजबूती से स्थापित करता है।

हमें अपने संविधान की इस भावना को समझना और उसे आगे बढ़ाना चाहिए। एक जागरूक नागरिक के रूप में हमें अपने अधिकारों के साथ-साथ अपने कर्तव्यों को भी निभाना चाहिए।

जय संविधान! जय भारत!

लेखक: Kaushal Asodiya
www.kaushalasodiya.in


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