Ashoka Se Ambedkar Tak: Bharat Mein Bauddh Dharm Ka Punaruththan | अशोक से डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर तक: भारत में बौद्ध धर्म का पुनरुत्थान
अशोक से डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर तक: भारत में बौद्ध धर्म का पुनरुत्थान
भारत बौद्ध धर्म की जन्मस्थली है, लेकिन समय के साथ यह अपने ही देश में कमजोर पड़ता गया। सम्राट अशोक और डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने अलग-अलग कालखंडों में इसके पुनरुत्थान में अहम भूमिका निभाई। सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को एक वैश्विक धर्म में परिवर्तित किया, जबकि डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने इसे दलितों और शोषितों के लिए सामाजिक क्रांति का माध्यम बनाया।
यह लेख बौद्ध धर्म के पुनरुत्थान की ऐतिहासिक यात्रा को समेटेगा, जिसमें सम्राट अशोक से लेकर डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर तक के योगदान को विस्तार से समझाया जाएगा।
1 .बौद्ध धर्म का प्राचीन उत्थान और पतन
गौतम बुद्ध और बौद्ध धर्म की स्थापना
गौतम बुद्ध (563-483 ईसा पूर्व) ने छठी शताब्दी ईसा पूर्व में बौद्ध धर्म की स्थापना की। उन्होंने जीवन के दुखों से मुक्ति के लिए चार आर्य सत्य (Four Noble Truths) और अष्टांगिक मार्ग (Eightfold Path) सिखाया। उनके विचारों में समता, अहिंसा और करुणा पर विशेष जोर था, जो आगे चलकर भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण बदलाव का कारण बने।
सम्राट अशोक और बौद्ध धर्म का वैश्विक प्रसार
- मौर्य सम्राट अशोक (268-232 ईसा पूर्व) ने कलिंग युद्ध (261 ईसा पूर्व) के बाद बौद्ध धर्म को अपनाया और इसे एक राजधर्म के रूप में प्रचारित किया।
- उन्होंने धम्म नीति लागू की, जिसमें अहिंसा, धार्मिक सहिष्णुता और नैतिकता को बढ़ावा दिया गया।
- उनके द्वारा स्थापित बौद्ध स्तूप (Stupas), शिलालेख (Edicts) और विहार (Monasteries) आज भी बौद्ध धर्म के प्रसार के प्रमाण हैं।
- अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए श्रीलंका भेजा, जिससे यह धर्म भारत के बाहर भी फैलने लगा।
- चीन, जापान, थाईलैंड, म्यांमार, नेपाल और तिब्बत तक बौद्ध धर्म का विस्तार हुआ।
बौद्ध धर्म का पतन क्यों हुआ?
- ब्राह्मणवादी प्रभाव: गुप्त काल (4वीं-6वीं शताब्दी) में हिंदू धर्म का पुनर्जागरण हुआ, जिससे बौद्ध धर्म कमजोर पड़ा।
- मुस्लिम आक्रमण: 12वीं शताब्दी में बख्तियार खिलजी ने नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालयों को नष्ट कर दिया, जिससे बौद्ध धर्म की शिक्षा प्रणाली समाप्त हो गई।
- संघटन की कमी: बौद्ध भिक्षु समाज से दूर हो गए, जिससे उनका प्रभाव धीरे-धीरे कम होने लगा।
- हिंदू धर्म में समावेश: बौद्ध धर्म के कई तत्व हिंदू धर्म में समाहित हो गए, जिससे इसकी स्वतंत्र पहचान कमजोर हो गई।
- 2. आधुनिक भारत में बौद्ध धर्म का पुनरुत्थान
डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर और बौद्ध धर्म
डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर (1891-1956) ने बौद्ध धर्म को सामाजिक क्रांति का माध्यम बनाया और इसे दलितों तथा शोषित वर्गों के लिए एक नए विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया।
डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर का बौद्ध धर्म अपनाने का निर्णय
- 1935 में येवला सम्मेलन में उन्होंने घोषणा की थी कि "मैं हिंदू के रूप में पैदा हुआ, लेकिन हिंदू के रूप में मरूंगा नहीं।"
- इसके बाद उन्होंने विभिन्न धर्मों का गहन अध्ययन किया और निष्कर्ष निकाला कि बौद्ध धर्म ही सामाजिक समानता और न्याय का मार्ग है।
- 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में दीक्षाभूमि पर 5 लाख से अधिक अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा ली।
डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर की 22 प्रतिज्ञाएँ (22 Vows)
बौद्ध धर्म अपनाने के दौरान उन्होंने अपने अनुयायियों को 22 प्रतिज्ञाएँ दिलवाईं, जिनमें प्रमुख रूप से हिंदू देवी-देवताओं की पूजा न करने, जाति-प्रथा को अस्वीकार करने, और समानता व बौद्ध शिक्षाओं का पालन करने की शपथ शामिल थी।
नवयान बौद्ध धर्म (Navayana Buddhism)
डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने पारंपरिक बौद्ध धर्म को समाज सुधार के लिए एक नए रूप में प्रस्तुत किया, जिसे नवयान बौद्ध धर्म कहा जाता है। यह धर्म सामाजिक न्याय, समानता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित है।
3. भारत में बौद्ध धर्म का वर्तमान परिदृश्य
आज भारत में बौद्ध धर्म का पुनरुत्थान तेजी से हो रहा है।
मुख्य कारण:
- दलित आंदोलन: डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर की विरासत को आगे बढ़ाते हुए दलित समुदाय बौद्ध धर्म को एक सम्मानजनक धर्म के रूप में अपना रहा है।
- धम्म चक्र प्रवर्तन दिवस: हर साल नागपुर में दीक्षाभूमि पर बौद्ध धर्म की दीक्षा की वर्षगांठ मनाई जाती है।
- भीम आर्मी और सामाजिक संगठन: आज कई संगठन बौद्ध धर्म के प्रचार में लगे हुए हैं।
- बौद्ध पर्यटन स्थल: बोधगया, सारनाथ, कुशीनगर और लुंबिनी जैसे स्थानों को सरकार और बौद्ध संगठनों द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है।
4. बौद्ध धर्म और भारत का भविष्य
संवैधानिक दृष्टि से बौद्ध धर्म का महत्व
डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर द्वारा निर्मित भारतीय संविधान के मूल सिद्धांत समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व बौद्ध धर्म से प्रेरित हैं।
बौद्ध धर्म अपनाने से संभावित सामाजिक प्रभाव:
- जातिवाद का अंत: बौद्ध धर्म समानता का संदेश देता है, जिससे जाति-प्रथा को समाप्त करने में मदद मिल सकती है।
- आर्थिक और शैक्षिक सुधार: बौद्ध धर्म अपनाने से दलित और पिछड़े वर्गों में आत्मसम्मान और शिक्षा का स्तर बढ़ सकता है।
- वैश्विक कूटनीति: भारत, चीन, जापान, थाईलैंड, नेपाल और अन्य बौद्ध देशों के साथ अपने सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत कर सकता है।
- निष्कर्ष
सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को विश्व पटल पर स्थापित किया, जबकि डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने इसे सामाजिक न्याय और समानता का आधार बनाया। दोनों ने अपने-अपने समय में बौद्ध धर्म के पुनरुत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
आज भी बौद्ध धर्म भारत में तेजी से फैल रहा है और यह सामाजिक समानता और न्याय का प्रतीक बनता जा रहा है। यदि भारतीय समाज बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों – करुणा, अहिंसा और समानता – को अपनाता है, तो यह सामाजिक क्रांति और प्रगति का एक नया युग हो सकता है।
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