"नरेंद्र मोदी बनाम औरंगजेब: एक आलोचनात्मक ऐतिहासिक तुलना | सत्ता, धर्म और नीतियों का विश्लेषण"


नरेंद्र मोदी और औरंगजेब: एक आलोचनात्मक तुलना

इतिहास में जब भी कट्टरता, सत्ता के केंद्रीकरण, असहमति के दमन और धार्मिक ध्रुवीकरण की बात होती है, तब अक्सर औरंगजेब का नाम लिया जाता है। हाल के वर्षों में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीति की तुलना भी औरंगजेब से की गई है। हालांकि दोनों अलग-अलग युगों और शासन प्रणालियों से जुड़े हुए हैं, लेकिन उनकी शासन नीतियों में कई समानताएँ देखी जा सकती हैं। यह तुलना केवल भावनाओं के आधार पर नहीं, बल्कि ऐतिहासिक तथ्यों और वर्तमान परिस्थितियों के विश्लेषण पर आधारित होनी चाहिए।


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1. सत्ता प्राप्ति और विरोधियों का दमन

➤ औरंगजेब:

अपने पिता शाहजहाँ को कैद में डालकर सत्ता प्राप्त की।

अपने भाइयों दारा शिकोह, शुजा और मुराद को सत्ता की लड़ाई में खत्म कर दिया।

सत्ता में आने के बाद उसने अपने कई विरोधियों को कठोर दंड दिया, जिसमें हिंदू राजाओं और विद्रोही मुस्लिम गुटों को कुचलना भी शामिल था।


➤ नरेंद्र मोदी:

लोकतांत्रिक रूप से चुने गए प्रधानमंत्री हैं, लेकिन उन्होंने अपनी पार्टी में कई वरिष्ठ नेताओं (आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी) को किनारे कर दिया।

उनकी सरकार पर विपक्षी नेताओं के खिलाफ CBI, ED और IT जैसी एजेंसियों का दुरुपयोग करने के आरोप लगते हैं।

असहमति को दबाने के लिए UAPA और राजद्रोह कानूनों का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे पत्रकारों, बुद्धिजीवियों, छात्रों और कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया।



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2. धार्मिक ध्रुवीकरण और नीतियाँ

➤ औरंगजेब:

जज़िया कर लगाया, जिससे गैर-मुस्लिमों को अतिरिक्त कर देना पड़ता था।

काशी विश्वनाथ मंदिर, मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मस्थान और अन्य कई मंदिरों को ध्वस्त कराया।

धार्मिक रूढ़िवादिता को बढ़ावा दिया, जिससे हिंदू और अन्य समुदायों के प्रति भेदभाव बढ़ा।

गुरु तेग बहादुर को मौत की सजा दी और सिखों पर कठोर नीति अपनाई।


➤ नरेंद्र मोदी:

उनकी राजनीति हिंदू राष्ट्रवाद पर आधारित है, जो अल्पसंख्यकों को हाशिए पर धकेलती है।

CAA-NRC कानून को मुस्लिम विरोधी बताया गया, जिससे देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए।

मॉब लिंचिंग, गोरक्षा और ‘लव जिहाद’ जैसे मुद्दों पर उनकी सरकार की चुप्पी और कुछ मामलों में समर्थन का आरोप लगता रहा है।

बीजेपी शासित राज्यों में बुलडोजर राजनीति को मुस्लिमों और दलितों के दमन का एक नया तरीका बताया गया।



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3. आर्थिक नीतियों की विफलता

➤ औरंगजेब:

लगातार युद्धों में व्यस्त रहने के कारण मुगल साम्राज्य की अर्थव्यवस्था कमजोर होती गई।

भारी कर लगाने के कारण किसान और व्यापारी असंतुष्ट हो गए, जिससे आर्थिक संकट गहराया।

दक्षिण भारत में युद्धों के कारण राजस्व का भारी नुकसान हुआ।


➤ नरेंद्र मोदी:

नोटबंदी (2016): इसे काले धन के खिलाफ लड़ाई बताया गया, लेकिन इससे करोड़ों लोग बेरोजगार हुए और अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लगा।

GST (2017): जल्दबाजी में लागू किए गए इस कर प्रणाली से छोटे व्यापारियों और मध्यम वर्ग को भारी नुकसान हुआ।

बेरोजगारी: 45 वर्षों में सबसे अधिक बेरोजगारी दर मोदी सरकार में दर्ज की गई। सरकारी नौकरियों में भर्तियां न होने से युवाओं में असंतोष बढ़ रहा है।

महंगाई: पेट्रोल-डीजल, खाद्य पदार्थ और अन्य आवश्यक वस्तुओं की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं, जिससे आम जनता पर बोझ बढ़ा है।

कॉर्पोरेटपरस्ती: सरकार पर उद्योगपतियों (अडानी-अंबानी) को फायदा पहुँचाने और सरकारी संपत्तियों का निजीकरण करने के आरोप लगते हैं।



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4. असहमति और विरोध को कुचलना

➤ औरंगजेब:

अपने शासन के दौरान उसने मराठों, राजपूतों और सिखों के खिलाफ आक्रामक नीति अपनाई।

शिवाजी महाराज को धोखे से आगरा में कैद किया, हालांकि वे वहाँ से भागने में सफल रहे।

गुरु गोबिंद सिंह के खिलाफ युद्ध छेड़ा और उनके बच्चों की हत्या करवाई।

धार्मिक आधार पर प्रशासन चलाया और अपने विरोधियों को खत्म किया।


➤ नरेंद्र मोदी:

किसान आंदोलन (2020-21): तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के ऐतिहासिक आंदोलन को दबाने की कोशिश की गई। लाठीचार्ज, इंटरनेट बैन और मीडिया दुष्प्रचार के बावजूद किसानों ने संघर्ष जारी रखा, और अंततः सरकार को कानून वापस लेने पड़े।

भीमा कोरेगांव मामला: दलित कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों को झूठे आरोपों में फँसाकर जेल में डाल दिया गया।

पेगासस जासूसी कांड: पत्रकारों, नेताओं और कार्यकर्ताओं की जासूसी करने के लिए इजरायली स्पाइवेयर पेगासस का इस्तेमाल किया गया।

CBI, ED और IT छापे: सरकार के विरोध में बोलने वाले नेताओं, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के खिलाफ सरकारी एजेंसियों का इस्तेमाल किया जाता है।



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5. सत्ता का केंद्रीकरण और प्रचार तंत्र

➤ औरंगजेब:

उसने मुगल साम्राज्य में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए सत्ता का अत्यधिक केंद्रीकरण किया।

प्रशासन को पूरी तरह से अपनी धार्मिक विचारधारा के अनुरूप ढालने की कोशिश की।


➤ नरेंद्र मोदी:

उनकी सरकार में मंत्रिमंडल और पार्टी के अन्य नेता स्वतंत्र रूप से निर्णय नहीं ले सकते। पूरी सत्ता केवल प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) के इर्द-गिर्द घूमती है।

मोदी की छवि एक "सर्वशक्तिमान नेता" के रूप में गढ़ी गई है, जो हर समस्या का समाधान खुद देते हैं।

मीडिया में सरकारी प्रचार को प्रमुखता दी जाती है, जबकि आलोचनात्मक पत्रकारों और समाचार संस्थानों को दबाया जाता है।



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निष्कर्ष

नरेंद्र मोदी और औरंगजेब दोनों ने अपनी सत्ता को मजबूत करने के लिए असहमति को कुचला, धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दिया और आर्थिक नीतियों में गलत फैसले लिए। औरंगजेब ने मुगल साम्राज्य की नींव कमजोर कर दी, जिससे उसका पतन शुरू हुआ। मोदी सरकार की नीतियाँ भी देश की सामाजिक और आर्थिक स्थिरता के लिए खतरा बन रही हैं।

दोनों के शासन में विरोध को राष्ट्रविरोधी करार दिया गया, मीडिया और न्यायपालिका को प्रभावित किया गया, और धार्मिक भावनाओं को हथियार बनाकर राजनीतिक लाभ उठाया गया। यदि मोदी सरकार इसी नीति पर चलती रही, तो यह भारत के लोकतंत्र और सामाजिक सद्भाव के लिए दीर्घकालिक खतरा साबित हो सकता है।

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