"नियतिवाद (Determinism) बनाम स्वतंत्र इच्छा: क्या हमारा भाग्य तय है?



"नियतिवाद (Determinism) बनाम स्वतंत्र इच्छा: क्या हमारा भाग्य तय है?"

नियतिवाद (Determinism) वह दार्शनिक सिद्धांत है, जिसके अनुसार ब्रह्मांड में होने वाली प्रत्येक घटना पूर्व निर्धारित कारणों द्वारा नियंत्रित होती है। इस सिद्धांत के अनुसार, जो कुछ भी होता है, वह पहले से तय होता है, और मनुष्य के पास वास्तविक स्वतंत्र इच्छा (Free Will) नहीं होती।

नियतिवाद के प्रमुख प्रकार

1. कठोर नियतिवाद (Hard Determinism)

यह मानता है कि प्रत्येक घटना प्राकृतिक कारणों से निर्धारित होती है और स्वतंत्र इच्छा मात्र एक भ्रम है।

स्पिनोज़ा (Baruch Spinoza) ने कहा:
👉 "मनुष्य यह सोचता है कि वह स्वतंत्र है, क्योंकि वह अपने कर्मों के प्रति सचेत होता है, लेकिन उन कारणों से अनजान रहता है जो उसके कर्मों को निर्धारित करते हैं।"

2. नरम नियतिवाद (Soft Determinism / Compatibilism)

यह मानता है कि नियतिवाद और स्वतंत्र इच्छा एक साथ मौजूद हो सकते हैं।

डेविड ह्यूम (David Hume) का मत था कि:
👉 "स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं है कि कर्म बिना किसी कारण के होते हैं, बल्कि यह है कि वे व्यक्ति की अपनी इच्छाओं और प्रवृत्तियों से उत्पन्न होते हैं।"

3. वैज्ञानिक नियतिवाद (Scientific Determinism)

यह भौतिकी, जीवविज्ञान और रसायनशास्त्र के नियमों पर आधारित है, जिसमें सब कुछ प्राकृतिक कारणों से पूर्व निर्धारित होता है।

लाप्लास (Pierre-Simon Laplace) ने कहा:
👉 "यदि हमें ब्रह्मांड के प्रत्येक कण की स्थिति और गति का पूर्ण ज्ञान हो, तो हम भविष्य के प्रत्येक क्षण की गणना कर सकते हैं।"

नियतिवाद पर प्रगतिशील आलोचना

1. नैतिक ज़िम्मेदारी और न्याय प्रणाली पर प्रभाव

यदि नियतिवाद सही है, तो अपराधी को उसके अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि उसके कर्म पहले से तय थे।

जॉन स्टुअर्ट मिल (John Stuart Mill) ने कहा:
👉 "यदि हम मान लें कि सब कुछ पहले से तय है, तो नैतिक सुधार और सामाजिक न्याय का कोई अर्थ नहीं रह जाता।"

2. सामाजिक बदलाव की संभावनाओं को बाधित करता है

यदि नियतिवाद यह कहता है कि सामाजिक असमानता, जातिवाद, गरीबी और शोषण पूर्व निर्धारित हैं, तो समाज कभी प्रगति नहीं कर पाएगा।

कार्ल मार्क्स (Karl Marx) ने कहा:
👉 "मनुष्य केवल परिस्थितियों का उत्पाद नहीं है; वह स्वयं परिस्थितियों को बदलने की शक्ति रखता है।"

3. स्वतंत्रता और रचनात्मकता को नकारता है

यदि हम पूर्णतः नियतिवादी दृष्टिकोण अपनाते हैं, तो कला, साहित्य, विज्ञान और दर्शन में नया सोचने और कुछ नया बनाने की संभावना समाप्त हो जाती है।

सार्त्र (Jean-Paul Sartre) ने इसे चुनौती दी और अस्तित्ववाद (Existentialism) के तहत स्वतंत्र इच्छा पर ज़ोर दिया।
👉 "मनुष्य स्वतंत्र होने के लिए अभिशप्त है, क्योंकि एक बार जब वह इस दुनिया में आ जाता है, तो वह अपने कार्यों के लिए स्वयं उत्तरदायी होता है।"

4. आधुनिक विज्ञान ने पूर्ण नियतिवाद को खंडित किया

क्वांटम भौतिकी (Quantum Mechanics) ने यह दिखाया कि कणों की गति पूरी तरह पूर्वानुमेय नहीं होती, जिससे यह निष्कर्ष निकला कि ब्रह्मांड में पूर्ण नियतिवाद लागू नहीं हो सकता।

रिचर्ड फाइनमैन (Richard Feynman) ने कहा:
👉 "प्रकृति में संयोग और अनिश्चितता के तत्व मौजूद हैं, जिससे नियतिवाद का सिद्धांत पूर्ण सत्य नहीं हो सकता।"

निष्कर्ष: हम भाग्य के गुलाम हैं या अपने भविष्य के निर्माता?

नियतिवाद का यह कहना कि सब कुछ पहले से तय है, समाज को निष्क्रियता और भाग्यवाद (Fatalism) की ओर धकेल सकता है। प्रगतिशील विचारकों का मानना है कि मानव को अपनी स्वतंत्रता और सामाजिक परिवर्तन की शक्ति को पहचानना चाहिए। अगर हम यह मान लें कि सब कुछ पहले से तय है, तो हम कभी भी अन्याय के खिलाफ लड़ाई नहीं लड़ेंगे, नए विचारों को विकसित नहीं करेंगे और एक बेहतर समाज की कल्पना नहीं कर पाएंगे।

Reference 

1. Ethics – Baruch Spinoza
2. On Liberty – John Stuart Mill
3. The Grand Design – Stephen Hawking & Leonard Mlodinow

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