Article 25, 26, 27, 28: Freedom of Religion in Indian Constitution | धर्म की आज़ादी और संविधान का अधिकार


हमारा संविधान, हमारी पहचान – 30


भारतीय संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता: अनुच्छेद 25 से 28 की व्यापक व्याख्या


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✦ भूमिका: जब धर्म और संविधान टकराते नहीं, बल्कि साथ चलते हैं

भारत विविधताओं से भरा देश है—धर्म, संस्कृति, भाषा और परंपराएं यहां की आत्मा हैं। लेकिन इतनी विविधता के बीच सामाजिक संतुलन और समानता को बनाए रखना एक बड़ा लक्ष्य रहा है। यही वजह है कि हमारे संविधान ने धार्मिक स्वतंत्रता को मौलिक अधिकारों के रूप में स्थापित किया है।

संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 तक ऐसे प्रावधान किए गए हैं, जो हर नागरिक को अपने धर्म के पालन, प्रचार और उससे संबंधित संस्थानों की स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं। लेकिन क्या आज भी इन अनुच्छेदों की आत्मा वैसी ही बरकरार है?

इस लेख में हम न केवल इन अनुच्छेदों की संवैधानिक व्याख्या करेंगे, बल्कि हालिया घटनाओं, नीतियों और सामाजिक प्रभावों की रोशनी में इनके बदलते मायनों को भी समझेंगे।


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✦ अनुच्छेद 25: प्रत्येक नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता का मूल अधिकार

अनुच्छेद 25 कहता है कि हर व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता है। यह अधिकार, हालांकि, सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों के अधीन है।

➤ प्रमुख विशेषताएँ:

किसी भी धर्म को मानने, अपनाने और उसका प्रचार करने की स्वतंत्रता।

धार्मिक रूप से परंपरागत कर्मकांडों का पालन भी इस अनुच्छेद में शामिल है।

सरकार सामाजिक सुधार के नाम पर धार्मिक प्रथाओं में हस्तक्षेप कर सकती है – जैसे सती प्रथा, बाल विवाह या धार्मिक भेदभाव पर रोक लगाना।


➤ उदाहरण:

1955 में लागू हिंदू विवाह अधिनियम और हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम ने धार्मिक रीति-रिवाजों में कानूनी सुधार कर महिलाओं को समान अधिकार दिए – यह अनुच्छेद 25 के सामाजिक सुधार संबंधी पहलू को दर्शाता है।


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✦ अनुच्छेद 26: धार्मिक संस्थानों को आत्म-प्रशासन की स्वतंत्रता

अनुच्छेद 26 धार्मिक संप्रदायों को अपने धार्मिक मामलों के संचालन, संगठन, संपत्ति प्राप्त करने और उसका प्रबंधन करने का अधिकार देता है।

➤ प्रमुख विशेषताएँ:

धार्मिक समुदाय अपने धार्मिक संस्थान स्वयं चला सकते हैं।

मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे या चर्च – सभी को संपत्ति रखने और प्रबंधित करने की स्वतंत्रता है।

यह अधिकार भी सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य से नियंत्रित है।


➤ समसामयिक संदर्भ:

तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों में हिंदू धार्मिक संस्थानों के सरकारी नियंत्रण को लेकर विवाद उठा। आरोप है कि सरकारें केवल एक धर्म विशेष के संस्थानों को नियंत्रित कर रही हैं, जबकि अन्य धर्मों के संस्थान स्वतंत्र हैं। यह अनुच्छेद 26 की आत्मा पर सवाल खड़ा करता है।


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✦ अनुच्छेद 27: धर्म को बढ़ावा देने के लिए कर वसूली पर रोक

अनुच्छेद 27 यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति को किसी धार्मिक उद्देश्य के लिए कर देने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा।

➤ प्रमुख विशेषताएँ:

राज्य किसी विशेष धर्म के प्रचार हेतु कर नहीं लगा सकता।

सभी नागरिकों से वसूले गए करों का प्रयोग किसी धर्म विशेष के हित में नहीं होना चाहिए।


➤ ऐतिहासिक उदाहरण:

1971 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा कि “राज्य केवल सांस्कृतिक या धर्मनिरपेक्ष उद्देश्यों के लिए कर वसूल सकता है, धार्मिक उद्देश्यों के लिए नहीं।” यह फैसला अनुच्छेद 27 की भावना को सुदृढ़ करता है।


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✦ अनुच्छेद 28: शिक्षा में धर्मनिरपेक्षता की रक्षा

अनुच्छेद 28 शिक्षा संस्थानों में धार्मिक शिक्षा पर स्पष्ट रेखाएं खींचता है।

➤ प्रमुख विशेषताएँ:

पूरी तरह से सरकारी सहायता प्राप्त संस्थानों में धार्मिक शिक्षा देना वर्जित है।

आंशिक रूप से सहायता प्राप्त संस्थानों में धार्मिक शिक्षा तभी दी जा सकती है, जब छात्र या उनके अभिभावक सहमत हों।

निजी धार्मिक संस्थानों को छूट दी गई है।


➤ व्यावहारिक परिदृश्य:

हाल ही में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत पाठ्यक्रम में प्राचीन भारतीय ज्ञान प्रणाली शामिल करने की योजना ने कुछ धार्मिक समुदायों को चिंतित कर दिया। प्रश्न उठे कि क्या यह नीति अनुच्छेद 28 के धर्मनिरपेक्षता सिद्धांत से मेल खाती है?


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✦ क्या इन अधिकारों पर संकट के बादल हैं?

हाल के वर्षों में कुछ नीतियों, विधेयकों और सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों ने संविधान में प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों को लेकर गहरे सवाल खड़े किए हैं।

➤ वक्फ अधिनियम 2025 पर विवाद:

नई वक्फ नीति में वक्फ बोर्ड को ज्यादा अधिकार देने और संपत्ति विवादों में सरकारी हस्तक्षेप की संभावना ने हिंदू, सिख और जैन समुदायों में असंतोष पैदा किया है। सवाल उठता है कि क्या यह धार्मिक संस्थानों की स्वतंत्रता पर चोट है?

➤ धार्मिक संस्थानों का सरकारीकरण:

कुछ राज्यों में केवल हिंदू मंदिरों को सरकारी नियंत्रण में लेकर, अन्य धर्मों के संस्थानों को छूट देना धार्मिक समानता के सिद्धांत के खिलाफ माना जा रहा है।

➤ शिक्षा में धार्मिक झुकाव:

कुछ पाठ्यक्रमों में एक धर्म विशेष की शिक्षाओं या प्रतीकों को प्रमुखता देना अनुच्छेद 28 के उल्लंघन के रूप में देखा जा रहा है।


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✦ धार्मिक स्वतंत्रता बनाम राष्ट्रीय एकता – संतुलन कैसे बने?

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार न केवल व्यक्तिगत आस्था का सवाल है, बल्कि यह लोकतंत्र के उस स्तंभ का प्रतिनिधित्व करता है जो विविधता में एकता की भावना को पोषित करता है।

लेकिन सवाल यह भी है:

क्या कोई धार्मिक स्वतंत्रता राष्ट्र की सुरक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य या सामाजिक समानता के खिलाफ जा सकती है?

कब और कैसे राज्य को हस्तक्षेप करना चाहिए?


इन सवालों का जवाब संविधान की मूल भावना में छिपा है – नैतिकता, सार्वजनिक व्यवस्था और सामाजिक न्याय के भीतर रहते हुए व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा।


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✦ निष्कर्ष: धार्मिक स्वतंत्रता – अधिकार भी, ज़िम्मेदारी भी

अनुच्छेद 25 से 28 भारतीय संविधान की धर्मनिरपेक्ष आत्मा के संरक्षक हैं। ये अनुच्छेद सुनिश्चित करते हैं कि भारत में कोई भी नागरिक अपने धर्म के कारण भेदभाव का शिकार न हो।

लेकिन स्वतंत्रता के साथ-साथ उत्तरदायित्व भी आता है। एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में हमें यह समझना चाहिए कि धर्म का उपयोग न तो राजनीतिक लाभ के लिए होना चाहिए, न ही सामाजिक वैमनस्य फैलाने के लिए।

सरकार, समाज और नागरिक – तीनों को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि धार्मिक स्वतंत्रता संविधान में सिर्फ एक लेख न रहे, बल्कि एक जीवंत और सक्रिय मूल्य बनकर देश की आत्मा को शक्ति प्रदान करे।


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लेखक: Kaushal Asodiya





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