Dr. B.R. Ambedkar Jayanti 2025: बाबासाहेब का जीवन, Books, विचार और समाज पर Impact





डॉ. भीमराव अंबेडकर की 134वीं जयंती पर विशेष ब्लॉग

लेखक: कौशल असोदिया


परिचय

आज भारतवर्ष 134वीं अंबेडकर जयंती मना रहा है। यह दिन न केवल एक महान व्यक्तित्व को श्रद्धांजलि देने का अवसर है, बल्कि उनके विचारों, संघर्षों और योगदानों को याद करने का भी दिन है। डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर, जिन्हें पूरे सम्मान के साथ बाबासाहेब अंबेडकर कहा जाता है, भारतीय समाज के इतिहास में एक ऐसी क्रांतिकारी हस्ती रहे हैं जिन्होंने न सिर्फ दलित समाज के लिए बल्कि समग्र भारतीय समाज के लिए समानता, न्याय और स्वतंत्रता की मशाल जलाई।


डॉ. भीमराव अंबेडकर का जीवन परिचय

जन्म:
डॉ. अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के मऊ नामक स्थान पर हुआ था। वे महार जाति से थे जिसे उस समय अछूत माना जाता था। उनके पिता रामजी मालोजी सकपाल ब्रिटिश सेना में सूबेदार थे और शिक्षा के प्रति जागरूक थे।

शिक्षा:
बचपन से ही अंबेडकर अत्यंत मेधावी छात्र थे। उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की और आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें बड़ौदा राज्य की छात्रवृत्ति से अमेरिका भेजा गया। उन्होंने अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम.ए. और पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद वे इंग्लैंड गए और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और ग्रेज़ इन से विधि की पढ़ाई पूरी की। वे पहले भारतीय थे जिन्होंने विदेशी विश्वविद्यालयों से तीन डॉक्टरेट डिग्रियां प्राप्त कीं।


सामाजिक संघर्ष और आंदोलन

अछूतों के अधिकारों की लड़ाई:
डॉ. अंबेडकर ने देखा कि भारत में सामाजिक विषमता चरम पर है। दलितों को न शिक्षा का अधिकार था, न मंदिर प्रवेश का, न सार्वजनिक जलस्रोतों का उपयोग करने का। उन्होंने इस अन्याय के खिलाफ संगठित आंदोलन शुरू किया।

महाड़ सत्याग्रह (1927):
यह आंदोलन महाराष्ट्र के महाड़ शहर में हुआ जहाँ उन्होंने दलितों को सार्वजनिक जलाशयों से पानी पीने का अधिकार दिलवाया। इसी मौके पर उन्होंने मनुस्मृति को जलाया, जो वर्ण व्यवस्था और जातिगत भेदभाव की प्रतीक थी।

नासिक का कालाराम मंदिर आंदोलन (1930):
यह आंदोलन मंदिरों में दलितों के प्रवेश के अधिकार को लेकर हुआ। डॉ. अंबेडकर के नेतृत्व में हजारों अनुयायियों ने नासिक के कालाराम मंदिर के बाहर आंदोलन किया।


राजनीतिक योगदान

संविधान निर्माता:
भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद 1947 में डॉ. अंबेडकर को देश के पहले कानून मंत्री और संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष के रूप में चुना गया। उन्होंने भारतीय संविधान का निर्माण किया, जो दुनिया के सबसे विस्तृत और प्रगतिशील संविधानों में से एक है। उन्होंने सामाजिक न्याय, समानता, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों को इसमें स्थान दिया।

हिंदू कोड बिल:
डॉ. अंबेडकर ने महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए हिंदू कोड बिल का मसौदा तैयार किया, जिससे उन्हें संपत्ति, विवाह और उत्तराधिकार में समान अधिकार मिल सकें। हालांकि विरोध के कारण यह बिल पास नहीं हो सका और उन्होंने 1951 में मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया।


बौद्ध धर्म में दीक्षित होना

14 अक्टूबर 1956 को डॉ. अंबेडकर ने नागपुर में अपने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण किया। उन्होंने कहा कि “मैं हिंदू पैदा हुआ, यह मेरे वश में नहीं था; लेकिन हिंदू मरूँगा नहीं, यह मेरे वश में है।”
उन्होंने बौद्ध धर्म को इसलिए अपनाया क्योंकि यह समानता, करूणा और न्याय के सिद्धांतों पर आधारित है। उनका यह कदम सामाजिक क्रांति की दिशा में एक ऐतिहासिक घटना थी।


बाबासाहेब द्वारा लिखित प्रमुख पुस्तकें

डॉ. अंबेडकर न केवल एक समाज सुधारक और राजनेता थे, बल्कि एक महान लेखक, चिंतक और विद्वान भी थे। उन्होंने अपने विचारों को व्यापक रूप से पुस्तकों और लेखों के माध्यम से प्रस्तुत किया। नीचे उनकी कुछ प्रमुख पुस्तकों का उल्लेख किया गया है:

  1. Annihilation of Caste (जाति का उन्मूलन):
    जाति प्रथा की कठोर आलोचना और उसे समाप्त करने की आवश्यकता पर बल।

  2. The Problem of the Rupee – Its Origin and Its Solution:
    भारत की मुद्रा नीति और आर्थिक समस्याओं का विश्लेषण।

  3. Who Were the Shudras?:
    शूद्रों की उत्पत्ति और उनके समाज में स्थान पर ऐतिहासिक विश्लेषण।

  4. The Untouchables – Who Were They and Why They Became Untouchables?:
    अछूत जातियों के उत्पीड़न के ऐतिहासिक कारण।

  5. Buddha and His Dhamma:
    बुद्ध के जीवन, उनके सिद्धांतों और धम्म के दर्शन की सरल व्याख्या।

  6. Thoughts on Linguistic States:
    भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की वकालत।

  7. Riddles in Hinduism:
    हिंदू धर्म की परंपराओं की तर्कसंगत समीक्षा।


डॉ. अंबेडकर के विचारों का आज के समाज पर प्रभाव

1. सामाजिक समानता की चेतना

आज सामाजिक न्याय, जाति-विरोध और समता की जो चेतना देखी जाती है, वह डॉ. अंबेडकर की देन है। उन्होंने वंचित वर्ग को आत्म-सम्मान के लिए लड़ना सिखाया।

2. संविधान और कानून के जरिए अधिकारों की प्राप्ति

भारतीय संविधान आज भी दलितों और पिछड़ों को कानूनी सुरक्षा और समान अवसर प्रदान करता है। आरक्षण और संरक्षण की व्यवस्था अंबेडकर की सोच का परिणाम है।

3. राजनीतिक चेतना और संगठन निर्माण

बहुजन राजनीति और दलित आंदोलनों को वैचारिक आधार डॉ. अंबेडकर से मिला। आज राजनीतिक दलों में उनकी विचारधारा का बड़ा प्रभाव है।

4. बौद्ध धर्म और नैतिक क्रांति

अंबेडकर द्वारा प्रारंभ किया गया नवयान बौद्ध आंदोलन आज करोड़ों लोगों के लिए समानता और आत्मगौरव का मार्ग है।

5. शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव

अंबेडकर के “शिक्षित बनो” नारे से प्रेरित होकर आज हजारों दलित-पिछड़े छात्र उच्च शिक्षा में प्रवेश पा रहे हैं।

6. युवाओं में प्रेरणा

सोशल मीडिया, छात्र संगठन, साहित्य और आंदोलनों में आज की युवा पीढ़ी अंबेडकर से प्रेरणा लेकर सामाजिक बदलाव के लिए कार्य कर रही है।

7. वैश्विक प्रभाव

डॉ. अंबेडकर के विचार अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराहे जा रहे हैं। वे मानवाधिकार और सामाजिक समानता के वैश्विक प्रतीक बन चुके हैं।


निष्कर्ष

134वीं अंबेडकर जयंती पर हमें डॉ. अंबेडकर के जीवन, संघर्ष और विचारों को स्मरण करते हुए यह संकल्प लेना चाहिए कि हम सामाजिक न्याय, समानता और बंधुत्व की उस नींव को मजबूत करेंगे जिसे उन्होंने अपने जीवन से गढ़ा। उनकी पुस्तकें आज भी हमें आत्म-मूल्यांकन और सामाजिक सुधार की प्रेरणा देती हैं।
डॉ. अंबेडकर केवल एक व्यक्ति नहीं थे, वे एक विचारधारा हैं, एक आंदोलन हैं और एक परिवर्तन की प्रतीक हैं।

जय भीम! नमो बुद्धाय!

लेखक: कौशल असोदिया


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