Gautam Buddha Ka Grih Tyag: The True Story Behind Shakya-Koliya War | Dr. Ambedkar Ki Nazar Se



🧘‍♂️ बुद्ध का गृहत्याग: आत्ममुक्ति नहीं, सामाजिक न्याय की खोज (डॉ. आंबेडकर की दृष्टि से)

✨ प्रस्तावना

भारत के इतिहास में शायद ही कोई निर्णय इतना क्रांतिकारी रहा हो जितना कि गौतम बुद्ध का गृहत्याग। परंपरागत कहानियाँ इसे आत्मा की मुक्ति या वैराग्य से जोड़ती हैं, लेकिन डॉ. भीमराव आंबेडकर ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक The Buddha and His Dhamma में इसकी सामाजिक और ऐतिहासिक वास्तविकता को सामने रखा।

यह गृहत्याग एक अकेले व्यक्ति का नहीं, बल्कि एक संपूर्ण अन्यायपूर्ण व्यवस्था से विच्छेद और विद्रोह का प्रतीक था।


🏰 सिद्धार्थ और उनका परिवेश

सिद्धार्थ शाक्य गणराज्य के एक राजकुमार थे, जिन्होंने यशोधरा (कोलीय वंश की राजकुमारी) से विवाह किया और उन्हें राहुल नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। लेकिन यह भौतिक जीवन उन्हें कभी आत्मसंतोष नहीं दे सका। उनका चिंतन गहराई से सामाजिक और मानवीय समस्याओं पर केंद्रित था।


🛑 शाक्य और कोलीय वंशों के बीच संघर्ष

🔹 झगड़े की जड़ – रोहिणी नदी का पानी

सिद्धार्थ के गृहत्याग से पहले शाक्य और कोलीय वंशों के बीच रोहिणी नदी के पानी के बंटवारे को लेकर गंभीर विवाद हुआ। यह नदी दोनों राज्यों की सीमाओं से होकर बहती थी और कृषि का मुख्य स्रोत थी।

📖 “The Shakyas and the Koliyas fell into a quarrel over the water of the river Rohini which ran between their territories.”
Dr. B.R. Ambedkar, The Buddha and His Dhamma

🔹 युद्ध की स्थिति और जातीय अहंकार

यह विवाद इस हद तक बढ़ गया कि दोनों गणराज्य युद्ध की तैयारी में जुट गए। सिद्धार्थ ने, जो उस समय युवा थे, दोनों पक्षों को समझाने की बहुत कोशिश की। लेकिन शाक्य और कोलीय दोनों ही अपने-अपने जातीय गर्व और श्रेष्ठता के मद में चूर थे।

📖 “The Buddha was disgusted with both the Shakyas and the Koliyas.”

यह घटना सिद्धार्थ के लिए केवल एक राजनीतिक झगड़ा नहीं थी, बल्कि यह मानवता की विफलता का एक कटु उदाहरण बन गई।


💥 यह संघर्ष बना गृहत्याग का कारण

इस घटना से सिद्धार्थ को यह अहसास हुआ कि:

  • मनुष्य अंधभक्ति और जातीय घमंड में अपनी बुद्धि खो देता है,

  • समाज हिंसा, स्वार्थ और मूर्खता से भरा हुआ है,

  • और जब तक इंसान अपनी सोच नहीं बदलेगा, दुख समाप्त नहीं होंगे।

📖 “It was then that he made up his mind to leave home and search for a way to end this suffering.”
— Dr. Ambedkar

इस बिंदु पर उन्होंने यह निर्णय लिया कि यदि समाज को बचाना है, तो किसी को अपने सारे सुख, रिश्ते और अधिकार छोड़कर सच्चाई की खोज में निकलना होगा।


💬 यशोधरा और राहुल को छोड़ने का निर्णय

डॉ. आंबेडकर के अनुसार, सिद्धार्थ ने बिना बताए नहीं, बल्कि यशोधरा से समझदारी और आत्मीयता से बातचीत करके घर छोड़ा।

📖 “The Prince was deeply attached to his wife. But she too was a woman of wisdom and spirit. She understood his mind.”

यशोधरा को यह मालूम था कि सिद्धार्थ का यह निर्णय केवल परिवार का नहीं, बल्कि पूरी मानवता का भविष्य बदलने का प्रयास है।


👣 कोई चमत्कार नहीं, कोई देवदूत नहीं

इस गृहत्याग में कोई चमत्कार, देवता, स्वर्गिक संकेत, उड़नखटोला या रहस्यमयी मार्गदर्शक नहीं था। यह पूरी तरह एक मानव का विवेकपूर्ण और दुख से त्रस्त समाज को दिशा देने का निर्णय था।

📖 “He went alone, on foot, without any supernatural intervention.”


🔥 बुद्ध का असली त्याग: जातिवाद, हिंसा और मूढ़ता का विरोध

यह त्याग सिर्फ परिवार का नहीं था — यह त्याग था:

  • जातीय अहंकार का,

  • सामाजिक शोषण का,

  • अंधविश्वासों से भरे परंपरागत धर्म का।

यह विद्रोह था उस व्यवस्था के खिलाफ जो मनुष्य को मनुष्य नहीं मानती थी।


🧭 निष्कर्ष: डॉ. आंबेडकर की दृष्टि में बुद्ध का गृहत्याग

डॉ. आंबेडकर ने बुद्ध के गृहत्याग को न किसी आध्यात्मिक पलायन की तरह देखा, न किसी चमत्कार की तरह। उनके अनुसार, यह एक सामाजिक क्रांतिकारी का कदम था — जो अपने ही लोगों की मूर्खता और स्वार्थ से क्षुब्ध होकर ज्ञान, करुणा और न्याय की खोज में निकला।

यह त्याग ही आगे चलकर नवयान बौद्ध धर्म की नींव बना — जो केवल ध्यान नहीं, सामाजिक परिवर्तन का मार्ग है।


✍️ लेखक: कौशल आसोड़िया

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