Labour Day : Dr. Babasaheb Ambedkar ka Historic Role in Mazdoor Adhikaar aur Indian Constitution


अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस: डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर की श्रमिक दृष्टि को समर्पित एक दिवस

✍️ लेखक: Kaushal Asodiya


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👷‍♂️ मजदूरों के अधिकार और डॉ. अम्बेडकर की विरासत

हर साल 1 मई को मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस (International Labour Day) दुनिया भर के श्रमिकों और कामगारों के संघर्षों, अधिकारों और उपलब्धियों को श्रद्धांजलि देने का दिन है। भारत में यह दिन और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि हमारे यहां श्रमिकों के अधिकारों की जो मजबूत नींव पड़ी, उसका प्रमुख श्रेय जाता है — डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर को।

बहुत कम लोगों को यह पता है कि भारत में श्रम सुधारों के जनक, न्यूनतम वेतन, 8 घंटे कार्य दिवस, महिला श्रमिकों के अधिकार, सामाजिक सुरक्षा जैसे क्रांतिकारी प्रावधानों के पीछे अम्बेडकर की सोच और योजनाएं थीं। उनका दृष्टिकोण श्रमिक को केवल एक उत्पादन इकाई नहीं, बल्कि एक सम्मानित मानव संसाधन के रूप में देखने का था।


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🌍 श्रमिक दिवस का इतिहास: शिकागो से चेन्नई तक

अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस की शुरुआत 1886 में अमेरिका के शिकागो शहर में हुई, जहां हज़ारों मजदूरों ने 8 घंटे कार्यदिवस की मांग को लेकर प्रदर्शन किया था। इस प्रदर्शन पर हुए पुलिस अत्याचार ने श्रमिक आंदोलन को और अधिक तीव्र कर दिया और अंततः 1 मई को श्रमिकों के अधिकारों का प्रतीक बना दिया गया।

भारत में 1 मई 1923 को पहली बार चेन्नई (तत्कालीन मद्रास) में श्रमिक दिवस मनाया गया, जिसकी पहल की थी हिंदुस्तान लेबर किसान पार्टी ने। यह आंदोलन उस चेतना का प्रतीक था, जो भारतीय मजदूर वर्ग में जाग रही थी — लेकिन इसे साकार रूप देने का काम किया डॉ. अम्बेडकर ने।


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🏛️ डॉ. अम्बेडकर: भारतीय श्रमिकों के संरक्षक और नीति निर्माता

डॉ. अम्बेडकर न केवल संविधान निर्माता थे, बल्कि एक विजनरी श्रम नेता भी थे। उन्होंने 1942 से 1946 के बीच ब्रिटिश वायसरॉय की कार्यकारिणी परिषद में लेबर मेंबर के रूप में कार्य किया। इस दौरान उन्होंने ऐसे निर्णय लिए, जिनका असर आज भी भारत के श्रम क्षेत्र पर गहराई से दिखाई देता है।

1. 🕗 8 घंटे कार्यदिवस की क्रांति

आज हम जिस 8 घंटे के कार्यदिवस को सामान्य मानते हैं, उसका क्रांतिकारी आरंभ 1942 में डॉ. अम्बेडकर ने किया था। उस समय मजदूरों से 12–14 घंटे तक काम लिया जाता था। अम्बेडकर ने इसे बदलकर 8 घंटे किया, जो आज तक मान्य है।

👉 यह न सिर्फ एक प्रशासनिक निर्णय था, बल्कि मानवीय गरिमा का पुनर्स्थापन था।

2. 🛡️ सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की नींव

डॉ. अम्बेडकर ने भारतीय मजदूरों के लिए स्वास्थ्य बीमा, भविष्य निधि (Provident Fund), और रोज़गार सुरक्षा जैसी योजनाओं की कल्पना की।

👉 आज का ESI (Employees’ State Insurance) और EPF (Employee Provident Fund) उन्हीं की दूरदर्शिता के परिणाम हैं।

3. 👩‍🍼 महिला श्रमिकों के अधिकार

डॉ. अम्बेडकर पहले भारतीय नेता थे जिन्होंने मातृत्व अवकाश को कानूनी अधिकार बनाया। उन्होंने महिला श्रमिकों को कार्यस्थल पर सम्मान, सुरक्षा और अधिकार दिलाने के लिए अनेक पहल कीं।

👉 उन्होंने साफ कहा था – जब तक महिलाओं को समान अवसर नहीं मिलेंगे, तब तक भारत प्रगति नहीं कर सकता।

4. 🤝 ट्रेड यूनियनों को कानूनी मान्यता

उन्होंने श्रमिकों के संगठन यानी ट्रेड यूनियन को संवैधानिक और कानूनी पहचान दी। इससे मज़दूरों को एकजुट होकर अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने की ताकत मिली।

👉 डॉ. अम्बेडकर ने हमेशा संगठित आंदोलन को श्रमिकों की असली ताकत माना।

5. 📜 भारतीय संविधान में श्रमिक अधिकार

भारत के संविधान के भाग IV – निदेशक सिद्धांतों में अम्बेडकर ने ऐसे प्रावधान जोड़े जो श्रमिकों की बेहतरी सुनिश्चित करते हैं:

अनुच्छेद 39 – पुरुषों और महिलाओं को समान वेतन का अधिकार।

अनुच्छेद 41 – काम, शिक्षा और सार्वजनिक सहायता का अधिकार।

अनुच्छेद 42 – मानवीय कार्य स्थितियां और मातृत्व अवकाश का प्रावधान।


👉 ये प्रावधान न केवल कानूनी ढांचे का हिस्सा हैं, बल्कि भारत के सामाजिक मूल्यों की भी बुनियाद हैं।


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🧩 आज की चुनौतियां: अम्बेडकर की सोच कितनी प्रासंगिक?

आज जब भारत का बड़ा हिस्सा गैर-संगठित क्षेत्र (Unorganized Sector) में कार्यरत है, तब डॉ. अम्बेडकर की नीतियां और भी प्रासंगिक हो जाती हैं।

कुछ प्रमुख चुनौतियां:

Gig economy और contract labour की अस्थिरता

न्यूनतम वेतन की अनुपलब्धता

सामाजिक सुरक्षा की कमी

महिला श्रमिकों के लिए सुरक्षित कार्यस्थल की जरूरत


👉 इन समस्याओं का हल तभी संभव है जब हम अम्बेडकर की श्रमिक-समर्पित नीतियों को फिर से लागू करें और संवैधानिक मूल्यों को धरातल पर उतारें।


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🙏 1 मई: केवल प्रतीक नहीं, परिवर्तन का संकल्प

अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस को हम केवल एक रैली या भाषण तक सीमित न रखें। यह दिन है — उन मूल्यों, अधिकारों और संघर्षों को याद करने का, जिन्हें डॉ. अम्बेडकर ने जीवनभर जिया और संवारा।

आइए सोचें:

क्या हमारे कार्यस्थलों पर हर श्रमिक को सम्मान मिल रहा है?

क्या महिला श्रमिक को समान अवसर मिल रहे हैं?

क्या हमारे समाज में श्रमिकों के अधिकार सुरक्षित हैं?


👉 अगर जवाब ‘नहीं’ है, तो 1 मई पर झंडा फहराने से अधिक ज़रूरत है — एक नई शुरुआत की, अम्बेडकर की सोच के साथ।


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📌 आगे की राह: श्रमिकों का भारत बनाना

डॉ. अम्बेडकर का सपना था एक ऐसा भारत, जहां हर श्रमिक को समानता, सुरक्षा और सम्मान मिले। उनके अनुसार:

> "Labour is not a commodity; it is the collective force of the working class that drives the nation forward."



अगर भारत को सशक्त, समावेशी और न्यायपूर्ण बनाना है, तो श्रमिकों के हक में ठोस कदम उठाने होंगे — नीतियों में, व्यवहार में और सोच में।


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📚 आगे पढ़ने के लिए सुझाव

भारतीय संविधान के भाग IV: निदेशक सिद्धांत

महिलाओं के श्रम अधिकार और भारतीय कानून

ESI और EPF योजनाएं: एक विस्तृत गाइड



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✨ निष्कर्ष

1 मई को हम सिर्फ एक दिन मनाएं, इतना काफ़ी नहीं है। असली श्रद्धांजलि तब होगी जब हम डॉ. अम्बेडकर की श्रमिक-संबंधी दृष्टि को नीति, समाज और संस्कृति में उतारें। उनके द्वारा शुरू किए गए आंदोलन को आज की चुनौतियों से जोड़ना ही श्रमिक दिवस की असली सार्थकता है।

आइए इस वर्ष, Labour Day को "अम्बेडकर के श्रमिक भारत" के निर्माण की दिशा में एक संकल्प दिवस बनाएं।


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✍️ लेखक: Kaushal Asodiya


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