Labour Day 2025: Dr. Babasaheb Ambedkar ka Historic Role in Mazdoor Adhikaar aur Indian Constitution


अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस और डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर: श्रमजीवी समाज के महान रचनाकार को समर्पित एक दिन

लेखक: कौशल असोदिया


"मज़दूरों के अधिकारों के मूल शिल्पकार – डॉ. बी.आर. अम्बेडकर"
"श्रमिक दिवस, अम्बेडकर की विरासत के बिना अधूरा है।"


हर साल 1 मई को दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस (International Labour Day) मनाया जाता है। भारत में भी यह दिन श्रमिकों और कामगारों के अधिकारों की रक्षा और सम्मान के लिए समर्पित होता है। लेकिन जब हम भारत में मजदूरों के अधिकारों, सामाजिक न्याय और संविधान में समाहित श्रमिक कल्याण की बात करते हैं, तो एक नाम अनिवार्य रूप से उभरता है — डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर।

बहुत कम लोग जानते हैं कि भारत में श्रमिकों के अधिकारों की नींव रखने का श्रेय मुख्यतः डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर को जाता है। चाहे वह श्रमिक कानून हो, काम के घंटे हों, न्यूनतम वेतन की व्यवस्था हो या महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश — इन सभी क्रांतिकारी कदमों के पीछे अम्बेडकर का योगदान अनमोल है।


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अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस की उत्पत्ति और भारत में उसका महत्व

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर श्रमिक दिवस की शुरुआत 1886 में अमेरिका के शिकागो शहर में हेमार्केट विद्रोह से जुड़ी है। मजदूर 8 घंटे की कार्य अवधि की मांग को लेकर सड़कों पर उतरे थे। इस संघर्ष ने एक वैश्विक चेतना को जन्म दिया, जिसने अंततः 1 मई को श्रमिकों के अधिकारों के लिए समर्पित दिन घोषित कर दिया।

भारत में पहली बार 1 मई 1923 को चेन्नई (तत्कालीन मद्रास) में श्रमिक दिवस मनाया गया। यह आयोजन भारतीय मज़दूर किसान पार्टी (Labour Kisan Party of Hindustan) द्वारा किया गया था। लेकिन भारत में श्रमिकों के अधिकारों को कानूनी, संवैधानिक और संस्थागत रूप से संरक्षित करने का कार्य डॉ. अम्बेडकर ने किया।


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डॉ. अम्बेडकर: भारत में श्रमिकों के संरक्षक

डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर न केवल भारत के संविधान निर्माता थे, बल्कि एक ऐसे समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री और कानूनविद् भी थे जिन्होंने श्रमिकों, दलितों, महिलाओं और वंचितों के लिए सामाजिक-आर्थिक न्याय की नींव रखी। बतौर श्रम मंत्री (Labour Member) वायसराय की कार्यकारिणी में 1942 से 1946 तक उन्होंने ऐसे अनेक ऐतिहासिक निर्णय लिए, जिन्होंने भारत के श्रमिक आंदोलन को मजबूती दी।

1. 8 घंटे कार्य दिवस की व्यवस्था

भारत में 8 घंटे का कार्यदिवस लागू करने का श्रेय डॉ. अम्बेडकर को जाता है। इससे पहले मजदूरों से 12-14 घंटे तक काम करवाया जाता था। 1942 में श्रम मंत्री रहते हुए उन्होंने इसे बदलकर 8 घंटे किया — जो आज तक लागू है। यह कदम एक क्रांतिकारी परिवर्तन था और मजदूरों के जीवन की गुणवत्ता में बड़ा सुधार लाया।

2. मजदूरों के लिए सामाजिक सुरक्षा

उन्होंने कामगारों के लिए बीमा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा जैसे प्रावधानों की नींव रखी। Employees' State Insurance (ESI) और Provident Fund (PF) जैसे आज के कल्याणकारी उपाय उसी सोच का परिणाम हैं।

3. महिला श्रमिकों के अधिकार

डॉ. अम्बेडकर ने महिला श्रमिकों के लिए मातृत्व अवकाश (Maternity Leave) की कानूनी मान्यता दी। यह एक ऐसा कदम था जो न केवल महिला अधिकारों को बढ़ावा देता था, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण में भी बदलाव लाता था।

4. ट्रेड यूनियनों को मान्यता

उन्होंने श्रमिक संगठनों और ट्रेड यूनियनों को कानूनी पहचान दी और उनकी भूमिका को संविधानिक दायरे में लाकर मज़बूती दी। इससे श्रमिक अपने अधिकारों के लिए एकजुट होकर आवाज़ उठा सके।

5. भारतीय संविधान में श्रमिक अधिकारों का समावेश

भारतीय संविधान के भाग IV में दिए गए निदेशक सिद्धांतों में डॉ. अम्बेडकर ने श्रमिकों के कल्याण के लिए विशेष अनुच्छेद जोड़े। जैसे कि -

अनुच्छेद 39 – पुरुषों और महिलाओं को समान वेतन का अधिकार।

अनुच्छेद 41 – काम, शिक्षा और सार्वजनिक सहायता का अधिकार।

अनुच्छेद 42 – न्यायोचित और मानवतापूर्ण कार्य स्थितियां और मातृत्व अवकाश।


इन सभी संवैधानिक प्रावधानों में डॉ. अम्बेडकर की दूरदर्शिता और श्रमिकों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता स्पष्ट दिखाई देती है।


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आज की श्रमिक चुनौतियां और अम्बेडकर की प्रासंगिकता

आज जब भारत में असंगठित क्षेत्र के करोड़ों मज़दूर न्यूनतम वेतन, सामाजिक सुरक्षा और स्थायित्व से वंचित हैं, तब डॉ. अम्बेडकर की विचारधारा और उनकी नीतियां पहले से अधिक प्रासंगिक हो गई हैं। gig economy, contract labour, और informal sector की अनियमितता ने एक बार फिर श्रमिक वर्ग को असुरक्षित बना दिया है।

मजदूरों की संख्या तो बढ़ी है, लेकिन अधिकारों की गारंटी कमजोर हुई है। ऐसे में हमें फिर से अम्बेडकर की ओर लौटना होगा — उनकी सोच, उनके बनाए कानून और संविधान की भावना को पुनर्जीवित करना होगा।


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1 मई को डॉ. अम्बेडकर को समर्पित करें

यदि हम वास्तव में 1 मई को श्रमिकों का दिन मानते हैं, तो हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि भारत में इस दिन को अर्थ और गरिमा देने वाले व्यक्ति डॉ. अम्बेडकर ही हैं। उनके प्रयासों से ही मजदूर वर्ग को गरिमा, सम्मान और अधिकार प्राप्त हुए।

इसलिए अब समय आ गया है कि अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस को केवल एक प्रतीकात्मक आयोजन न मानकर, उसे डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर की श्रमिक-समर्पित सोच को केंद्र में रखकर मनाया जाए।


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निष्कर्ष: श्रमिकों का भारत और अम्बेडकर का सपना

डॉ. अम्बेडकर ने हमेशा एक ऐसे भारत का सपना देखा था, जहां श्रमिकों को सम्मान, सामाजिक सुरक्षा और समानता मिले। उनका मानना था कि बिना श्रमिकों के कोई भी राष्ट्र उन्नति नहीं कर सकता। उनके शब्दों में:

"Labour is not a commodity; it is the collective force of the working class that drives the nation forward."

इसलिए 1 मई को हम न केवल मजदूरों को, बल्कि डॉ. अम्बेडकर को भी श्रद्धांजलि दें, जिन्होंने हमें श्रमिक अधिकारों की मजबूत नींव दी। उनके बताए मार्ग पर चलकर ही हम एक न्यायपूर्ण, समान और श्रमिक-मित्र भारत की ओर अग्रसर हो सकते हैं।


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लेखक: kaushal asodiya 

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