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"Indian Citizenship: भारत की नागरिकता के नियम, प्रक्रिया, पात्रता और CAA की पूरी जानकारी

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Indian Citizenship: भारत की नागरिकता के नियम,  कानून और प्रक्रिया पूरी जानकारी परिचय भारतीय नागरिकता (Indian Citizenship) एक संवैधानिक और कानूनी संकल्पना है, जो यह निर्धारित करती है कि कौन भारतीय नागरिक होगा और कौन नहीं। भारतीय संविधान के भाग-II (अनुच्छेद 5 से 11) में नागरिकता से जुड़े प्रावधान दिए गए हैं। इसके अलावा, भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 (Citizenship Act, 1955) नागरिकता प्राप्त करने, बनाए रखने और समाप्त करने के तरीकों को निर्धारित करता है। नागरिकता प्राप्त करने के कई तरीके हैं, जैसे जन्म से, वंशानुक्रम से, पंजीकरण से, देशीयकरण द्वारा, और क्षेत्रीय समावेशन के माध्यम से। साथ ही, नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA, 2019) ने भी नागरिकता के कुछ प्रावधानों में बदलाव किए हैं। इस लेख में हम विस्तार से भारतीय नागरिकता प्राप्त करने की प्रक्रिया, उसके नियमों और CAA के प्रभाव को समझेंगे। भारतीय नागरिकता के संवैधानिक प्रावधान भारतीय संविधान में नागरिकता से संबंधित प्रावधान भाग-II में दिए गए हैं: 1. अनुच्छेद 5: भारतीय नागरिकता का अधिकार निम्नलिखित व्यक्ति भारतीय नागरिक ह...

भारतीय नागरिकता: अनुच्छेद 7, 8 और 9 का विस्तृत विश्लेषण, सुप्रीम कोर्ट के फैसले और ऐतिहासिक विवाद

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हमारा संविधान, हमारी पहचान – 13 भारतीय संविधान का भाग 2: अनुच्छेद 7, 8 और 9 का विस्तृत विश्लेषण भारतीय संविधान का भाग 2 (अनुच्छेद 5 से 11) भारतीय नागरिकता के प्रावधानों को स्पष्ट करता है। यह भाग यह तय करता है कि स्वतंत्रता के समय और उसके बाद कौन भारतीय नागरिक होगा, किन परिस्थितियों में किसी को नागरिकता दी जा सकती है, और कब कोई व्यक्ति अपनी भारतीय नागरिकता खो सकता है। आज हम अनुच्छेद 7, 8 और 9 का गहन अध्ययन करेंगे। अनुच्छेद 7: पाकिस्तान चले गए लोगों की नागरिकता संवैधानिक प्रावधान: जो व्यक्ति 1 मार्च 1947 के बाद पाकिस्तान चला गया और वहां की नागरिकता ले ली, वह भारतीय नागरिक नहीं रहेगा। लेकिन यदि कोई व्यक्ति भारत सरकार से विशेष परमिट (Permit) प्राप्त करके भारत लौटता है , तो उसे भारतीय नागरिकता दी जा सकती है। यह अनुच्छेद विभाजन के बाद भारत से पाकिस्तान गए लोगों की नागरिकता के बारे में स्पष्टीकरण देता है। अनुच्छेद 7 की पृष्ठभूमि: भारत और पाकिस्तान के विभाजन के समय लाखों लोग पाकिस्तान चले गए थे। कुछ समय बाद, उनमें से कई लोग भारत लौटना चाहते थे। लेकिन भारत सरकार क...

Ashoka Se Ambedkar Tak: Bharat Mein Bauddh Dharm Ka Punaruththan | अशोक से डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर तक: भारत में बौद्ध धर्म का पुनरुत्थान

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अशोक से डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर तक: भारत में बौद्ध धर्म का पुनरुत्थान   भारत बौद्ध धर्म की जन्मस्थली है, लेकिन समय के साथ यह अपने ही देश में कमजोर पड़ता गया। सम्राट अशोक और डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने अलग-अलग कालखंडों में इसके पुनरुत्थान में अहम भूमिका निभाई। सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को एक वैश्विक धर्म में परिवर्तित किया, जबकि डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने इसे दलितों और शोषितों के लिए सामाजिक क्रांति का माध्यम बनाया। यह लेख बौद्ध धर्म के पुनरुत्थान की ऐतिहासिक यात्रा को समेटेगा, जिसमें सम्राट अशोक से लेकर डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर तक के योगदान को विस्तार से समझाया जाएगा। 1   . बौद्ध धर्म का प्राचीन उत्थान और पतन गौतम बुद्ध और बौद्ध धर्म की स्थापना गौतम बुद्ध (563-483 ईसा पूर्व) ने छठी शताब्दी ईसा पूर्व में बौद्ध धर्म की स्थापना की। उन्होंने जीवन के दुखों से मुक्ति के लिए चार आर्य सत्य (Four Noble Truths) और अष्टांगिक मार्ग (Eightfold Path) सिखाया। उनके विचारों में समता, अहिंसा और करुणा पर विशेष जोर था, जो आगे चलकर भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण बदलाव का कारण बने। सम्राट अशोक और बौद्...

भारतीय संविधान: अनुच्छेद 5 और 6 - नागरिकता के प्रावधान, सुप्रीम कोर्ट के फैसले और ऐतिहासिक घटनाएँ

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हमारा संविधान, हमारी पहचान – भाग 13 भारतीय नागरिकता: अनुच्छेद 5 और 6 की गहराई से समझ लेखक: Kaushal Asodiya भारत का संविधान न केवल एक कानूनी दस्तावेज है, बल्कि यह हमारे राष्ट्रीय चरित्र और मूल्यों का प्रतिबिंब भी है। संविधान का भाग 2 (अनुच्छेद 5 से 11) भारतीय नागरिकता को परिभाषित करता है। आज हम इसमें से विशेष रूप से अनुच्छेद 5 और 6 पर चर्चा करेंगे, जो यह निर्धारित करते हैं कि भारत की स्वतंत्रता के समय कौन भारतीय नागरिक था और विभाजन के बाद भारत आए लोगों की नागरिकता की स्थिति क्या रही। --- नागरिकता का संवैधानिक ढांचा भारतीय संविधान के भाग 2 में नागरिकता से संबंधित नियमों को स्पष्ट किया गया है। इसमें यह बताया गया है कि 26 जनवरी 1950 को संविधान के लागू होने के समय कौन भारतीय नागरिक माना जाएगा, साथ ही विभाजन के कारण पाकिस्तान से भारत आने वाले शरणार्थियों की स्थिति को भी इसमें शामिल किया गया है। --- अनुच्छेद 5: संविधान लागू होते समय भारत के नागरिक अनुच्छेद 5 के अनुसार, वह हर व्यक्ति भारतीय नागरिक होगा जो 26 जनवरी 1950 को भारत के राज्यक्षेत्र में मौजूद था और निम्नलिखित में से कोई एक शर्त पूरी ...

अनुच्छेद 4 भारतीय संविधान: राज्यों का पुनर्गठन, संसद की शक्ति, सुप्रीम कोर्ट फैसले और विवाद

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हमारा संविधान, हमारी पहचान – 12 अनुच्छेद 4: भारतीय राज्यों का पुनर्गठन और संविधान संशोधन पर प्रभाव प्रिय मित्रों, आज हम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 4 पर विस्तार से चर्चा करेंगे। यह अनुच्छेद अनुच्छेद 2 और 3 के साथ मिलकर भारत में नए राज्यों के निर्माण और मौजूदा राज्यों के पुनर्गठन की प्रक्रिया को स्पष्ट करता है। इसके साथ ही यह बताता है कि क्या इन प्रक्रियाओं के लिए संविधान संशोधन की आवश्यकता होती है या नहीं। अ नुच्छेद 4: भारतीय संविधान का विशेष प्रावधान संविधान में प्रावधान: अनुच्छेद 4 कहता है कि— "अनुच्छेद 2 या अनुच्छेद 3 के अंतर्गत कोई भी विधि, संसद द्वारा बनाई गई हो, को संविधान का संशोधन नहीं माना जाएगा, भले ही उसमें संविधान के पहले अनुसूची (राज्यों और संघीय क्षेत्रों की सूची) और चौथे अनुसूची (राज्यसभा में सीटों का आवंटन) में संशोधन किया गया हो।" मुख्य बिंदु: संविधान संशोधन की आवश्यकता नहीं: संसद जब किसी नए राज्य का निर्माण करती है या किसी मौजूदा राज्य की सीमाएँ बदलती है, तो इसे संविधान संशोधन नहीं माना जाता। इसका अर्थ यह है कि अनुच्छेद 368 (संविधान...

"नरेंद्र मोदी बनाम औरंगजेब: एक आलोचनात्मक ऐतिहासिक तुलना | सत्ता, धर्म और नीतियों का विश्लेषण"

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नरेंद्र मोदी और औरंगजेब: एक आलोचनात्मक तुलना इतिहास में जब भी कट्टरता, सत्ता के केंद्रीकरण, असहमति के दमन और धार्मिक ध्रुवीकरण की बात होती है, तब अक्सर औरंगजेब का नाम लिया जाता है। हाल के वर्षों में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीति की तुलना भी औरंगजेब से की गई है। हालांकि दोनों अलग-अलग युगों और शासन प्रणालियों से जुड़े हुए हैं, लेकिन उनकी शासन नीतियों में कई समानताएँ देखी जा सकती हैं। यह तुलना केवल भावनाओं के आधार पर नहीं, बल्कि ऐतिहासिक तथ्यों और वर्तमान परिस्थितियों के विश्लेषण पर आधारित होनी चाहिए। --- 1. सत्ता प्राप्ति और विरोधियों का दमन ➤ औरंगजेब: अपने पिता शाहजहाँ को कैद में डालकर सत्ता प्राप्त की। अपने भाइयों दारा शिकोह, शुजा और मुराद को सत्ता की लड़ाई में खत्म कर दिया। सत्ता में आने के बाद उसने अपने कई विरोधियों को कठोर दंड दिया, जिसमें हिंदू राजाओं और विद्रोही मुस्लिम गुटों को कुचलना भी शामिल था। ➤ नरेंद्र मोदी: लोकतांत्रिक रूप से चुने गए प्रधानमंत्री हैं, लेकिन उन्होंने अपनी पार्टी में कई वरिष्ठ नेताओं (आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी) को किनारे कर दिया। उनकी सरकार...

"અમદાવાદ: જય ભીમ ચોકથી રામેશ્વર મહાદેવ ચાર રસ્તા સુધીના નવા રોડની પહોળાઈ અને દબાણ અંગે રજૂઆત" - Narendra parmar

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"અમદાવાદ: જય ભીમ ચોકથી રામેશ્વર મહાદેવ ચાર રસ્તા સુધીના નવા રોડની પહોળાઈ અને દબાણ અંગે રજૂઆત" - Narendra parmar  નરેન્દ્રભાઈ ડાહ્યાભાઈ પરમાર, A -38-આસોડિયા સોસાયટી, લીમડા બસ સ્ટેન્ડ, મેઘાણી નગર, અમદાવાદ  1) *પ્રતિશ્રી,* *કમિશ્નરશ્રી,* અમદાવાદ મ્યુનિસિપલ કોર્પોરેશન, દાણાપીઠ, સરદાર ભવન, અમદાવાદ શહેર  2) *પ્રતિશ્રી,* *મેયરશ્રી,* અમદાવાદ મ્યુનિસિપલ કોર્પોરેશન, દાણાપીઠ, સરદાર ભવન, અમદાવાદ શહેર  3) *પ્રતિશ્રી,* *પોલીસ કમિશ્નરશ્રી*, પોલીસ કમિશ્નરની કચેરી, શાહીબાગ, અમદાવાદ શહેર  વિષય:- *જય ભીમ ચોક લીમડા થી રામેશ્વર મહાદેવ ચાર રસ્તા ના બનેલા નવા રોડની પહોળાઈ અને દબાણ અંગે રજૂઆત* *મે. સાહેબ શ્રી*                ઉપરોક્ત વિષયના અનુસંધાનમાં હું સામાજિક કાર્યકર્તા નરેન્દ્ર પરમાર દ્વારા અમારા રહેઠાણ વિસ્તારમાં બનેલા રોડ અને રોડની બાજુમાં આવેલા દબાણો તેમજ રોડની પહોળાઈની વિસંગતતા અંગે આપ સાહેબ શ્રી ને નીચે જણાવેલ અગત્યના મુદ્દાઓનું જલ્દીથી નિરાકરણ આવે તે અંગે રજૂઆત કરીએ છીએ *મુદ્દા નં. (1)* જય ભીમ ચોક લીમડા થી રામેશ્વર મહાદેવન...

प्रचार तंत्र: सत्ता का सबसे बड़ा हथियार | प्रोपेगेंडा के प्रकार और अमेरिका व मोदी सरकार की रणनीति

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प्रचार तंत्र: सत्ता का सबसे बड़ा हथियार | प्रोपेगेंडा के प्रकार और अमेरिका व मोदी सरकार की रणनीति प्रचार (प्रोपेगेंडा) क्या है? प्रचार (Propaganda) वह रणनीति है जिसका उपयोग सरकारें, राजनीतिक दल, कॉर्पोरेट कंपनियां और अन्य संस्थाएं जनता की सोच को प्रभावित करने के लिए करती हैं। यह एक ऐसा माध्यम है जिससे किसी विचार, विचारधारा, उत्पाद या व्यक्ति को बढ़ावा दिया जाता है, भले ही वह सच हो या झूठ। प्रोपेगेंडा मुख्य रूप से भावनात्मक रूप से संचालित किया जाता है और तर्कसंगत सोच को दरकिनार कर लोगों की धारणाओं को नियंत्रित करने का काम करता है। --- प्रोपेगेंडा के प्रमुख प्रकार 1. झूठा प्रोपेगेंडा (False Propaganda) – जानबूझकर झूठी जानकारी फैलाकर जनता को भ्रमित करना। 2. आधा सच (Half-Truth Propaganda) – सच्चाई का एक हिस्सा बताना, लेकिन मुख्य तथ्य छिपा लेना। 3. भय प्रोपेगेंडा (Fear Propaganda) – डर और असुरक्षा का माहौल बनाकर लोगों को प्रभावित करना। 4. राष्ट्रवादी प्रोपेगेंडा (Nationalist Propaganda) – देशभक्ति की भावना को हथियार बनाकर जनता को नियंत्रित करना। 5. प्रतीकात्मक प्रोपेगेंडा (Symbo...

अनुच्छेद 3 भारतीय संविधान: राज्यों का पुनर्गठन, ऐतिहासिक घटनाएँ, सुप्रीम कोर्ट के फैसले और विवाद

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हमारा संविधान, हमारी पहचान – 11 भारतीय संविधान का अनुच्छेद 3: नए राज्यों का निर्माण, ऐतिहासिक घटनाएँ, सुप्रीम कोर्ट के फैसले और विवाद प्रिय मित्रों, आज हम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 पर गहराई से चर्चा करेंगे। यह अनुच्छेद संसद को नए राज्यों के निर्माण, मौजूदा राज्यों की सीमाओं और नामों में परिवर्तन करने की शक्ति प्रदान करता है। यह हमारे देश की विविधता और लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। --- अनुच्छेद 3: राज्यों का पुनर्गठन और सीमाओं में परिवर्तन संविधान का प्रावधान: अनुच्छेद 3 के अनुसार, संसद विधि द्वारा निम्नलिखित कर सकती है: 1. नए राज्य का निर्माण 2. किसी राज्य के क्षेत्र का विस्तार 3. किसी राज्य के क्षेत्र को घटाना 4. किसी राज्य की सीमाओं को परिवर्तित करना 5. किसी राज्य का नाम बदलना महत्वपूर्ण बिंदु: संसद को यह शक्ति प्राप्त है कि वह किसी भी राज्य का विभाजन कर एक नया राज्य बना सकती है। इस प्रक्रिया में संबंधित राज्य के विधानमंडल से राय ली जाती है, लेकिन अंतिम निर्णय संसद का होता है। अनुच्छेद 3 राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन को कानूनी मा...

अनुच्छेद 2 भारतीय संविधान: नए राज्यों का प्रवेश, सुप्रीम कोर्ट निर्णय और ऐतिहासिक घटनाएं

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 हमारा संविधान, हमारी पहचान – भाग 10 अनुच्छेद 2: भारतीय संघ में नए राज्यों का प्रवेश और स्थापना लेखक: Kaushal Asodiya भारतीय संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा है। इसमें न केवल नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों का उल्लेख है, बल्कि यह भी निर्धारित किया गया है कि भारत का संघ किन रूपों में बढ़ेगा और किस प्रकार नए राज्य उसमें शामिल होंगे। संविधान का अनुच्छेद 2 इसी प्रक्रिया को निर्धारित करता है। यह भारत की भौगोलिक और राजनीतिक एकता की नींव मजबूत करता है। --- अनुच्छेद 2 का शाब्दिक अर्थ और संवैधानिक उद्देश्य संविधान का अनुच्छेद 2 स्पष्ट रूप से कहता है: "संसद, विधि द्वारा, ऐसे निबंधनों और शर्तों पर, जो वह ठीक समझे, संघ में नए राज्यों का प्रवेश या उनकी स्थापना कर सकेगी।" इस अनुच्छेद के दो मुख्य उद्देश्य हैं: 1. संघ में नए राज्यों का प्रवेश: यदि कोई बाहरी क्षेत्र, जो भारत का हिस्सा नहीं था, भारत में शामिल होना चाहता है, तो संसद उसे स्वीकार कर सकती है। 2. नए राज्यों की स्थापना: यदि किसी विशेष परिस्थिति में नया राज्य बनाना आवश्यक हो, तो संसद को यह अध...

भारतीय संविधान अनुच्छेद 1: भारत की पहचान और क्षेत्रीय अखंडता का विश्लेषण

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हमारा संविधान, हमारी पहचान – भाग 8 भारत: राज्यों का संघ | अनुच्छेद 1 की गहराई से व्याख्या लेखक: Kaushal Asodiya प्रकाशन: मार्च 2025 भारतीय संविधान का अनुच्छेद 1 न केवल एक कानूनी प्रावधान है, बल्कि यह हमारे देश की अखंडता, संप्रभुता और संघीय संरचना का मौलिक आधार भी है। यह प्रावधान स्पष्ट रूप से स्थापित करता है कि भारत "राज्यों का संघ" है और इस संघ में प्रत्येक राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश का अपना निश्चित स्थान है। इस लेख में हम अनुच्छेद 1 की विस्तृत व्याख्या करेंगे, इसके ऐतिहासिक महत्व पर चर्चा करेंगे और सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख निर्णयों के संदर्भ में इसके प्रभाव का विश्लेषण प्रस्तुत करेंगे। 1. अनुच्छेद 1(1): भारत – राज्यों का संघ अर्थ और महत्व अनुच्छेद 1 का पहला उपखंड कहता है – "भारत, अर्थात् इंडिया, राज्यों का संघ होगा।" इस वाक्यांश में दो मुख्य पहलू निहित हैं: दोहरी पहचान: "भारत" और "India" दोनों नाम समान रूप से मान्य हैं, जो हमारे देश की बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक पहचान को दर्शाते हैं। राज्यों का संघ: यह शब्द यह स्...

हमारा संविधान, हमारी पहचान -8

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हमारा संविधान, हमारी पहचान -8 भारतीय संविधान की 12 अनुसूचियाँ (Schedules) और उनका विस्तृत विवरण भारतीय संविधान को अधिक व्यवस्थित और प्रभावी बनाने के लिए इसे 12 अनुसूचियों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक अनुसूची में कुछ विशिष्ट विषयों से संबंधित महत्वपूर्ण विवरण दिए गए हैं। आइए, प्रत्येक अनुसूची को विस्तार से समझते हैं: --- 1. पहली अनुसूची (First Schedule) विषय: भारतीय राज्यों और संघीय क्षेत्रों (Union Territories) की सूची मुख्य बिंदु: इसमें भारत के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के नाम और उनकी सीमाओं का विवरण दिया गया है। यदि किसी राज्य की सीमाओं में परिवर्तन किया जाता है तो इसे संसद द्वारा संशोधन के माध्यम से बदला जा सकता है। --- 2. दूसरी अनुसूची (Second Schedule) विषय: सरकारी अधिकारियों के वेतन और भत्ते मुख्य बिंदु: इसमें निम्नलिखित पदों के वेतन, भत्तों और पेंशनों से संबंधित प्रावधान हैं: 1. राष्ट्रपति और राज्यपाल 2. लोकसभा और राज्यसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष 3. उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश 4. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) --- 3. तीसरी अनुसू...

"नियतिवाद (Determinism) बनाम स्वतंत्र इच्छा: क्या हमारा भाग्य तय है?

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"नियतिवाद (Determinism) बनाम स्वतंत्र इच्छा: क्या हमारा भाग्य तय है?" नियतिवाद (Determinism) वह दार्शनिक सिद्धांत है, जिसके अनुसार ब्रह्मांड में होने वाली प्रत्येक घटना पूर्व निर्धारित कारणों द्वारा नियंत्रित होती है। इस सिद्धांत के अनुसार, जो कुछ भी होता है, वह पहले से तय होता है, और मनुष्य के पास वास्तविक स्वतंत्र इच्छा (Free Will) नहीं होती। नियतिवाद के प्रमुख प्रकार 1. कठोर नियतिवाद (Hard Determinism) यह मानता है कि प्रत्येक घटना प्राकृतिक कारणों से निर्धारित होती है और स्वतंत्र इच्छा मात्र एक भ्रम है। स्पिनोज़ा (Baruch Spinoza) ने कहा: 👉 "मनुष्य यह सोचता है कि वह स्वतंत्र है, क्योंकि वह अपने कर्मों के प्रति सचेत होता है, लेकिन उन कारणों से अनजान रहता है जो उसके कर्मों को निर्धारित करते हैं।" 2. नरम नियतिवाद (Soft Determinism / Compatibilism) यह मानता है कि नियतिवाद और स्वतंत्र इच्छा एक साथ मौजूद हो सकते हैं। डेविड ह्यूम (David Hume) का मत था कि: 👉 "स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं है कि कर्म बिना किसी कारण के होते हैं, बल्कि यह है कि वे व्यक्ति की ...

युद्ध बनाम बुद्ध – शांति बनाम तबाही का सच!

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युद्ध बनाम बुद्ध: विनाश की राह या शांति का पथ? जब-जब दुनिया ने युद्ध का रास्ता अपनाया, तब-तब मानवता को विनाश, पीड़ा और अराजकता का सामना करना पड़ा। युद्ध केवल शक्ति, लोभ और अहंकार की तुष्टि का साधन रहा है, लेकिन इसके परिणामस्वरूप समाज का ताना-बाना बिखर जाता है। इसके विपरीत, बुद्ध का धम्म शांति, करुणा और अहिंसा का संदेश देता है, जो न केवल समाज को जोड़ता है बल्कि व्यक्ति के भीतर भी आंतरिक शांति का संचार करता है। आज के समय में जब दुनिया में संघर्ष, हिंसा और आतंकवाद बढ़ रहे हैं, बुद्ध के मार्ग की प्रासंगिकता पहले से कहीं अधिक है। यह आवश्यक हो गया है कि हम युद्ध के मार्ग को छोड़कर बुद्ध की शिक्षाओं को अपनाएं, जो सच्ची मानवता का मार्ग दिखाती हैं। युद्ध: विनाश और पीड़ा का कारण इतिहास गवाह है कि युद्ध ने केवल रक्तपात और बर्बादी को जन्म दिया है। चाहे वह किसी भी कारण से लड़ा गया हो—राजनीतिक सत्ता के लिए, धर्म के नाम पर, संसाधनों के लिए या फिर जातीय वर्चस्व के लिए—युद्ध ने केवल निर्दोषों को कष्ट दिया है। 1. कलिंग युद्ध और सम्राट अशोक: कलिंग युद्ध भारतीय इतिहास के सबसे भीषण युद्धों में ...